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________________ PuruNIIMa गा० २२] अणुभागविहत्तीए वड्डीए अंतरं ११७ केव० १ ज० एगस० अतोमु०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। अणंतगुणवड्डीए अंतरं केव० १ ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । अणंतगुणहाणीए अंतरं केव० ? जह० अंतोमु०, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि अंतोमुहुत्तेण सादिरेयाणि । अवढि० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु०। पंचिंदियतिरिक्खतियम्मि छवड्डि-पंचहाणीणमंतरं केव० चिरं० ? ज० एगस० अंतो०, उक्क० पुव्वकोडि० पुधत्तं । अणंतगुणहाणीए अंतरं केव० ? ज. अंतोमु०, उक्क० तिएिण पलिदोवमाणि अंतोमुहुत्तेण सादिरेयाणि । अवहि० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज०--मणुसअपज्ज. छवढि०-अवढि० ज० एगस०, छहाणीणमंतरं ज० अतोमु०, उक्क० सव्वेसि अंतोमुहुत्तं । मणुस्सतियाणं पंचिं०तिरिक्खतियभंगो । णवरि अणंतगुणवड्डीए अंतरं ज. एगस०, उक्क० पुव्वकोडी देसूणा । $ १७६. देवेसु छवडि-पंचहाणीणमंतरं केव० ? ज. एगस० अंतोमु०, उक्क० अहारस सागरोवमाणि सादिरेयाणि । अणंतगुणहाणीए अंतरं केव० ? ज० अंतोमु०, पाँव हानियोंका अन्तर काल कितना है ? वृद्धियोंका जघन्य अन्तर एक समय और हानियों का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। अनन्तगुणवृद्धिका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनन्तगुणहानिका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त अधिक तीन पल्य है। अवस्थानका जघन्य अन्तर काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। पञ्चन्द्रियतिर्यञ्च, पञ्चन्द्रियतिर्यञ्च पर्यात और पञ्चन्द्रियतिर्यञ्चयोनिनी जीवोंमें छह वृद्धियों और पाँच हानियों का अन्तरकाल कितना है ? वृद्धियोंका जघन्य अन्तर एक समय और हानियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्महर्त है। तथा दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। अनन्तगुणहानिका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त अधिक तीन पल्य है। अवस्थानका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। पञ्चन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्यअपर्याप्तकोंमें छह वृद्धियों और अवस्थानका जघन्य अन्तरकाल एक समय है, छह हानियोंका जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहर्त है। सामान्य मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें पञ्चन्द्रियतिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च पर्याप्त और पञ्चन्द्रियतिर्यञ्च योनिनियोंके समान भंग जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अनन्तगुणवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। विशेषार्थ आदेशसे गतिमार्गणामें वृद्धि, हानि और अवस्थानका अन्तर भुजगार विभक्तिमं कहे गये भुजगार, अल्पतर और अवस्थानविभक्तिके अन्तरकालकी ही तरह विचारकर जान लेना चाहिये । विशेष इतना है कि तिर्यञ्चोंमें पाँच वृद्धियों और पाँच हानियोंका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक है जैसा कि पहले ओघसे बतलाया है। ६ १७६. देवोंमे छह वृद्धियों और पाँच हानियोंका अन्तरकाल कितना है ? वृद्धियोंका जघन्य अन्तर एक समय और हानियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है तथा दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक अट्ठारह सागर है। अनन्तगुणहानिका अन्तर कितना है ? जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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