SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२ ] भागविती वड्डीए सामित्तं ११३ - मोहणीय $ १७०. तत्थ समुक्कित्तणाणुगमेण दुविहो णिद्द े सो- - ओघेण आदेसेण । श्रघेण विडीओ छहाणीओ अवद्विदं च । एवं चदुसु गदीसु । णवरि आणदादि जाव सव्वसिद्धि ति अत्थि अनंतगुणहाणी अवद्विदं च । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि ति । एवं समुत्तिणाणुगमो समतो । $ १७१. सामित्ताणु० दुविहो णिद ेसो- ओघेण आदेसेण । ओघेण मोहणीयस्स छवडीओ' पंचहाणी' कस्स ? अण्णद० मिच्छादिडिस्स । अनंतगुणहाणी अवद्विदं च कस्स १ अण्णदरस्स सम्मादिडिस्स मिच्छाइडिस्स वा । एवं चदुसु गदी । वरि पंचिंदियतिरिक्ख अपज्ज० - मणुस अपज्ज० छवडीओ छहाणीओ अवद्विदं च कस्स ? अण्णद० मिच्छाइहिस्स | आणदादि जाव णवगेवज्जा त्ति अतगुणहाणी अवहिंदं च कस्स ? अण्ाद० सम्माइट्ठिस्स मिच्छाइ हिस्स वा । अणुद्दिसादि जाव सव्वहसिद्धि ति अनंतगुणहाणी अवद्वाणं च कस्स ? अण्णदरस्स सम्माइहिस्स । एवं जाणि को लेकर कथन किया है। वे भेद हैं- अनन्तभागवृद्धि, असंख्यात भागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनन्तगुणवृद्धि । इसीप्रकार हानिके भी छह भेद होते हैं । तथा इनके बाद होनेवाले अवस्थानका भी इसमें विचार किया गया है। $ १७०. उनमेंसे समुत्कीर्तनानुगम से निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । श्रघसे मोहनीयकर्मकी छ वृद्धियाँ. छ हानियाँ और अवस्थान होते हैं। इसीप्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि नत स्वर्गसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवों में अनन्तगुणहानि और स्थान होता है । इसप्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये । विशेषार्थ - ओघ की तरह चारों गतियों में भी मोहनीयके अनुभागकी छहों वृद्धियां, छहों हानियां और अवस्थान होते हैं । किन्तु आनतादिकमें केवल अनन्तगुणहानि और स्थानी होते हैं। इसप्रकार समुत्कीर्तनानुगम समाप्त हुआ । $ १७९. स्वामित्वानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । श्रघसे मोहनीयकी छ वृद्धियाँ और पाँच हानियाँ किसके होती हैं ? किसी एक मिध्यादृष्टि जीवके होती हैं । अनन्तगुणहानि और अवस्थिति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिध्यादृष्टिके होती हैं। इसीप्रकार चारों गतियोंमें कथन करना चाहिए । किन्तु कुछ विशेषता है जो इसप्रकार हैपञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च पर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमे छ वृद्धियाँ छ हानियाँ और अवस्थिति किसके होती हैं ? किसी भी मिध्यादृष्टिके होती हैं। नतसे लेकर नवत्रैत्रेयक पर्यन्त अनन्तहानि और अवस्थिति किसके होती है ? किसी भी सम्यग्दृष्टि और मिध्यादृष्टिके होती है । अनुदिशसे लेकर सत्रार्थसिद्धि तक के देवों अनन्तगुणहानि और अवस्थान किसके होते हैं ? २. ता० प्रा० प्रत्योः छहाणोश्रो १. ता० प्रती मोहणीयस्स अस्थि छवड्डीश्रो इति पाठः । इति पाठः । १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy