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गा० २२ ]
वित्तीय उत्तरपयडिभुजगार भागाभागो
पञ्जत- - [वणष्फदि० - बादरवणफदि०-] बादरवणष्फ दिपत्तेय ० पञ्ज ०० - [सुहुमवणफदि पज्जत्तापज्जत्त ० - ] बादरणिगोद ० - सुहुमणिगोदपज्जत्तापज्जत्त ओरालियमि० कम्मइय०मदि०सु० - अभवसि ०-मिच्छादि० असण्णि-अणाहारि ति । गवरि कम्मइय- अणाहारि० सम्म० सम्मामि ० अप्पद० भयणि० । श्राहार० - आहारमि० सव्वपयडीणमप्पदरं भयणिजं । एवमवगद ० - अकसा०-सुहुम ० - जहाक्खाद ० - उवसम० ससाण० सम्मामि० दिट्टि ति । एवं णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो
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दे० । श्रघेण मिच्छत्त
$ १०४. भागाभाग शुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओघे० बारसक० णवणोक० भुज० सव्वजी० केवडियो भागो ? असंखे० भागो । अप्पद ० केवडिओ भागो ? असंखेजा भागा। अब ट्ठि० सव्वजी० के० १ संखे ० भागो । एवमणंताणु० चउक्क० । णवरि श्रवत्तव्य अनंतिमभागो । सम्मत्त सम्मा मि० अप्पदर० सव्वजी ० उनके पर्याप्त और अपर्याप्त, वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर अपर्याप्त, सूक्ष्मवनस्पति व उनके पर्याप्त और अपर्याप्त बादर निगोद और उनके पर्याप्त और अपर्याप्त सूक्ष्म निगोद और उनके पर्याप्त और अपर्याप्त, औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, अभव्य, मिध्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव भजनीय
| आहारककाययोगी और आहारकमिश्र काययोगियों में सब प्रकृतियों का अल्पतर पद भजनीय है । इसी प्रकार अपगतवेदी, अकषायी, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत, यथाख्यातसंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों के जानना चाहिए ।
विशेषार्थ — एकेन्द्रियोंके २८ प्रकृतियों में से जिसके जितने पद सम्भव हैं उन पदवाले जीव सर्वदा रहते हैं अतः यहाँ एक ध्रुव भंग ही होता है। इसी बात के द्योतन करनेके लिये 'सब प्रकृतियोंके सब पद नियमसे हैं यह कहा है । इसी प्रकार मूलमें गिनाई गई बादर एकेन्द्रिय आदि मार्गणाओं में एक ध्रुव पद ही प्राप्त होता है अतः उनके कथनको एकेन्द्रियोंके समान कहा । किन्तु कार्य काययोग और अनाहारक मार्गणा में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्तावाले जीव कदाचित् पाये जाते हैं और कदाचित् नहीं पाये जाते हैं, इसलिये इनमें उक्त प्रकृतियोंका अल्पतर पद भजनीय है जिससे एक जीव और नाना जीवोंकी अपेक्षा दो भंग प्राप्त होते हैं । आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगमें सब प्रकृतियोंका एक अल्पतर पद ही होता है फिर भी यह सान्तर मार्गणा है इसलिये इसमें अल्पतर पदको भजनीय कहा । यहाँ भी दो भंग होते हैं । मूलमें अपगतवेद आदि और जितनी मार्गणाएं गिनाई हैं उनमें सब प्रकृतियों के अल्पतर पदवीला कदाचित् एक जीव और कदाचित् नाना जीव होते हैं अतः उनके कथनको आहारक काययोगियों के समान कहा ।
इस प्रकार नानाजीवों की अपेक्षा भंगविचय समाप्त हुआ ।
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१०४. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ निर्देश और आदेशनिर्देश | उनमेंसे ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकायोंकी भुजगार स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं । अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं । अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवों के कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीव अनन्तवें भाग हैं । सम्यक्त्व और
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