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________________ गा० २२] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिभुजगारकालो ३३ 5 ५८. एइंदिएसु मिच्छत्त० भुज० ज० एयसमओ, उक्क० बेसमया । अप्प० ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । अवढि० ओघं । सोलसक०-णवणोक० भुज० विदियपुढविभंगो। अप्प ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। सम्मत्तसम्मामि० अप्प० ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे भागो। एवं बादरेइंदिय. सुहमइंदिय-पुढवि० बादरपुढवि०-सुहुमपुढवि०-आउ०-बादरआउ०-सुहुमआउ० तेउ०बादरतेउ०-सुहुमतेउ०-वाउ०-चादरवाउ०-सुहुमवाउ०-बादरवणप्फदिपत्तेय-त्रणप्फदि०णिगोद०-बादरसुहुमाणं । बादरेइंदियअपज्ज-सुहमइंदियपज्जत्तापज्जत्ताणं मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० भुज० अवट्टि० एइंदियभंगो। अप्पदर० जह० एगस०, उक० अंतोमु० । सम्मत्त-सम्मामि० अप्प० ज० एयस०, उक्क० अंतोमु०। एवं पंचकायवादरअपज्ज०-सुहुमपज्जत्तापज्जत्ताणं। बादरेइंदियपज्ज-विगलिंदिय०-विगलिंदियपज्जत्ताणं मिच्छत्त० भुज० ज० एगस०, उक्क० बेसमया। अप्पद० ज० एगसमओ, उक्क० संखेज्जाणि वाससहस्साणि । अवढि० ओघं। सोलसक०-णवणोक० भुज० ज० एगस०, उक्क० सत्तारस समया। अप्पद०-अवढि० मिच्छत्तभंगो । [सम्मत्त-सम्माहोता है। तथा सम्यक्त्वकी अल्पतर स्थितिका जघन्यकाल एक समय कृतकृत्यवेदके सम्यक्त्वकी अपेक्षा प्राप्त होता है। ५८. एकेन्द्रियोंमें मिथ्यात्वकी भुजगार स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल दो समय है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल पल्योपमका असंख्यातवाँ भागप्रमाण है। अवस्थित स्थितिविभक्तिका काल ओघके समान है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी भुजगार स्थितिविभक्तिका भंग दूसरी पृथिवीके समान है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, वादर पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, जलकायिक, बादर जलकायिक, सूक्ष्म जलकायिक, अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक, सूक्ष्म अग्निकायिक, वायुकायिक, बादर वायुकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर, वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक, निगोद, बादर निगोंद और सूक्ष्म निगोद जीवोंके जानना चाहिये। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तिका भंग एकेन्द्रियोंके समान है। तथा अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त है। इसी प्रकार पाँचों स्थावरकाय बादर अपर्याप्त, पाँचों स्थावरकाय सूक्ष्मपर्याप्त और पाँचों स्थावरकाय सूक्ष्म अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, विकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंमें मिथ्यात्वकी भुजगार स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल दो समय है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल संख्यात हजार वर्ष है। तथा अवस्थित स्थितिविभक्तिका काल ओघके समान है । सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी भुजगार स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल सत्रह समय है। तथा अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तियोंका भंग मिथ्यात्वके समान है। सम्यकत्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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