SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३२ जय वला सहिदे कसाय पाहुडे [ द्विदिविहत्ती ३ गंतून णिल्लेविदत्तादो । विदियट्ठिदीए डिदपुरिसवेदडिदीए णिसेगाणं ण मलणमत्थि तेण छष्णोसायट्ठाणेहिंतो पुरिसवेदद्वाणाणं सरिसत्तं किष्ण बुच्चदे १ ण, णिसेगाणमेत्थ पहाणत्ताभावादो | पहाणत्ते वा विदियट्ठिदीए दिउदयवजिदसव्वपयडीणं द्वाणाणि सरिसाणि होज । ण च एवं, तहोवएसाभावादो । * कोधसंजलणद्विदिसंतकम्मद्वाणाणि विसेसाहियाणि । ९ ६३२. केत्तियमेत्तेण १ दुसमयूणदोआवलियाहि परिहीणअस्सकष्णकरणकिट्टीकरण-कोधतिष्णिकिडीवेदयकालमेत्तहिदिसंतकम्महाणेहि । णवरि णव कबंधमस्सियूण उवरि वि दुसमयुणदोआवलियमेत्तसंतद्वाणाणि कोहसंजलणस्स लब्भंति ति संपुष्णतिष्णिअद्धामेत्त संतकम्मट्ठाणेहिं विसेसाहियत्तमेत्थ दट्ठव्वं । * माणसंजणस्स हिदिसंतकम्माणापि विसेसाहियाणि । $ ६३३. केत्तियमेत्तेण ? माणसंजलणतिष्णिकिट्टीवेदयकालमेत्तेण । * मायासंजलणस्स ट्ठिदिसंतकम्माट्टणाणि विसेसाहियाणि । $ ६३४. केत्तियमेत्तेण ? मायासंजलणस्स तिन्हं किट्टीणं वेदयकालमेत्तेण । * लोभसंजलणस्स द्विदिसंतकम्महाणाणि विसेसाहियाणि । आवलिप्रमाण स्थान जाकर पुरुषवेदका क्षय होता है। शंका—द्वितीय स्थितिमें स्थित पुरुषवेदकी स्थितिके निषेकोंका गलन नहीं होता है, अतः पुरुषवेदके स्थान छह नोकषायोंके समान क्यों नहीं कहे जाते हैं ? समाधान— नहीं, क्योंकि यहाँ निषकों की प्रधानता नहीं है। यदि प्रधानता मान ली जाय तो द्वितीय स्थिति में स्थिति उदय रहित सब प्रकृतियोंके स्थान समान हो जायँगे, परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि इस प्रकारका उपदेश नहीं पाया जाता है। * इनसे क्रोधसंज्वलनके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं । § ६३२. शंका — कितने अधिक हैं ? समाधान — अश्वकर्णकरणकाल, कृष्टिकरणकाल और क्रोधकी तीन कृष्टियों का वेदककाल इनमें से कमसे कम दो समय कम दो आवलिप्रमाण कालके घटा देनेपर जितना शेष रहे उतने स्थितिसत्कर्मस्थान अधिक हैं । किन्तु इतनी विशेषता है कि क्रोधसंज्वलन के नवकबन्धकी अपेक्षा आगे भी दो समय कम दो आवलिप्रमाण सत्त्वस्थान प्राप्त होते हैं अतः यहाँ पूरे तीन स्थान प्रमाण सत्त्वस्थान विशेष अधिक जानने चाहिये । * इनसे मान संज्वलन के स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं । ९ ६३३. शंका- कितने अधिक हैं ? समाधान —— मानसंज्वलनकी तीन कृष्टियों के वेदनका जितना काल है उतने अधिक हैं । * इनसे मायासंज्वलनके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं । $ ६३४. शंका- कितने अधिक हैं ? समाधान — मायासंज्वलनकी तीन कृष्टियोंका जितना वेदनकाल है उतने अधिक हैं । * इनसे लोभसंज्वलनके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy