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________________ ३०० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ संभवाभावादो । एदं कुदो णव्वदे ? एदम्हादो चेव अप्पाबहुगादो। तेण संखेजभागवड्डिविहत्तिएहितो संखेनगुणहाणिविहत्तिया संखेजगुणा त्ति घेत्तव्यं । * संखेजभागहाणिकम्मंसिया संखेजगुणा । ६ ५७८. कुदो, संखेजवारं संखे०भागहाणि कादूण सइंसंखेजगुणहाणिकरणादो। * अवत्तव्वकम्मसिया असंखेजगुणा । $ ५७९. कुदो ? एगसमएण मिच्छत्तं पडिवजमाणरासिस्स असंखेजभागत्तादो। जदि सम्मत्तादो मिच्छत्तं गंतूण तत्थ थोवकालमवहिदा पउरं सम्मत्तं गेण्हंति तो अवत्तव्यविहत्तिएहि संखेजभागवडिविहत्तिएहिंतो थोवेहि होदव्वं ? ण च एवं, संखेजभागवडिविहत्तिएहितो अवत्तव्यविहत्तिया असंखेजगुणा त्ति सुत्तम्हि उवइत्तादो त्ति ? ण एस दोसो, जेसिं जीवाणं सम्मत्तस्स द्विदिसंतकम्ममत्थि ते अस्सिदण तहा परूविदत्तादो । ते अस्सिदूण परूविदमिदि कुदो णव्वदे ? असंखेजगुणवढिविहत्तिएहितो संखेजगुणवडिविहत्तिया असंखेजगुणा ति सुत्तादो णव्वदे। अण्णहा संखेजगुणा होज असंखेजगुणवड्डिपाओग्गहिदीहिंतो संखेजगुणवडिपाओग्गहिदीणं संखेजगुणत्तादो संख्यातभागवृद्धिको करते हैं, क्योंकि सबका सम्यक्त्वका ग्रहण करना संभव नहीं है । शंका—यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-इसी अल्पबहुत्वसे जाना जाता है। इसलिए संख्यातभागवृद्धिविभक्तिवालोंसे संख्यातगुणहानिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिये । * संख्यातभागहानिकमवाले जीव संख्यातगुणे हैं। $ ५७८. क्योंकि संख्यात बार संख्यातभागहानिको करके जीव एक बार संख्यातगुणहानिको करता है। * अवक्तव्यकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। ___६५७९. क्योंकि एक समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाली जीवराशिके वह असंख्यातवें भागप्रमाण है। शंका-यदि सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वमें जाकर और वहाँ स्तोक काल तक अवस्थित रहकर प्रचुर जीव सम्यक्वको ग्रहण करते हैं तो अवक्तव्यविभक्ति वाले जीव संख्यातभागवृद्धिविभक्तिवाले जीवोंसे थोड़े होने चाहिये । परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि संख्यातभागवृद्धिविभक्तिवालोंसे अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ऐसा सूत्रमें उपदेश दिया है ? । समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि जिन जीवोंके सम्यक्त्वका स्थितिसत्कर्म है उनकी अपेक्षा उस प्रकार कथन किया है। शंका-उनकी अपेक्षा कथन किया है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-असंख्यातगुणवृद्धिविभक्तिवालोंसे संख्यातगुणवृद्धिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं इस सूत्रसे जाना जाता है। अन्यथा संख्यातगुणे होते, क्योंकि असंख्यातगुणवृद्धिके योग्य स्थितियोंसे संख्यातगुणवृद्धिके योग्य स्थितियाँ संख्यातगुणी हैं और उनमें संचित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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