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________________ गा० २२] हिदिविहत्तीए वड्ढीए अप्पाबहुअं २८५ ६५६६. वेइंदियाणं तेइंदिएसु उप्पण्णाणं संखेजभागवड्डी ण होदि किंतु संखेजगुणवड्डी चेव होदि, एइंदियसंजुत्तं बंधमाणाणं चेव बीइंदियाणं पणुवीससागरोवममेत्तुक्कस्सहिदिबंधदसणादो । तं कुदो णव्वदे ? संकिलेसप्पाबहुअवयणादो। तं जहासव्वत्थोवो' सण्णिपंचिंदियपज्जत्तणामकम्मसंजुत्तो बंधसंकिलेसो। असण्णिपंचिंदियपजत्तणामकम्मसंजुत्तो बंधसंकिले सो अणंतगुणो। चउरिंदियपज्जत्तणामकम्मसंजुत्तो बंधसंकिलेसो अणंतगुणो। तेइ दियपज्जत्तणामकम्मसंजुत्तो बंधसंकिलेसो अणंतगुणो। बेइंदियपजत्तणामकम्मसंजुत्तो बंधसंकिलेसो अणंतगुणो । बादरेइंदियपज्जत्तणामकम्म--. संजुत्तो बंधसंकिलेसो अणंतगुणो। सुहुमेइंदियषजत्तणामकम्मसंजुत्तबंधस्स संकिलेसो अणंतगुणो । सण्णिपंचिंदियअपज्जत्तणामकम्मसंजुत्तबंधस्स संकिलेसो अणंतगुणो। असण्णिपंचिंदियअपजत्तणामकम्मसंजुत्तबंधस्स* संकिलेसो अणंतगुणो। चउरिदियअपजत्तणामकम्मसंजुत्तबंधस्स संकिलेसो अणंतगुणो। तेइंदियअपज्जत्तणामकम्मसंजुत्तबंधस्स संकिलेसो अणंतगुणो। बेइंदियअपजत्तणामकम्मसंजुत्तवंधस्स संकिलेसो अणंतगुणो। बादरेइंदियअपजत्तणामकम्मसंजुत्तबंधस्स संकिलेसो अणंतगुणो । सुहुमेइंदियअपजत्तणामकम्मसंजुत्तबंधस्स संकिलेसो अणंतगुणो ति। तेण कारणेण बेइंदियपज्जत्तयस्स बेइंदियपजत्तसंजुत्तं बंधमाणस्स सगउकस्सटिदिबंधादो पलिदो० विपरीत कल्पना युक्त नहीं है, क्योंकि विपरीत कल्पना करने पर अव्यवस्था प्राप्त होती है। ६५६६. दोइन्द्रिय जीव तीन इन्द्रिय जीवोंमें उत्पन्न होते हैं उनके संख्यातभागवृद्धि नहीं होती। किन्तु संख्यातगुणवृद्धि ही होती है, क्योंकि एकेन्द्रिय नामकर्मका बंध करनेवाले द्वीन्द्रिय जीवोंके ही पच्चीस सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति का बन्ध देखा जाता है। यदि कहा जाय कि यह किस प्रमाणसे जाना जाता है तो उसका उत्तर यह है कि यह संक्लेश विषयक अल्पबहुत्वसे जाना जाता है । जो इसप्रकार है--संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त नामकर्म संयुक्त बन्धका कारण संक्लेश सबसे थोड़ा है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त नामकर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। चौइन्द्रिय पर्याप्त नामकर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। तीनइन्द्रिय पर्याप्त नामक कर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। दोइन्द्रिय पर्याप्त नामकर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त नामकर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त नामकर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त नामकमसंयुक्त वन्धका कारण संक्लेश गुणा है। असंज्ञीपंचेन्द्रिय अपयोप्त नामकर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगणा है। चौइिन्द्रिय अपर्याप्त नामकर्म संयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। तीन इन्द्रिय अपर्याप्त नामकर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। दोइन्द्रिय अपर्याप्त नामकर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त नामकर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त नामकर्मसंयुक्त बन्धका कारण संक्लेश अनन्तगुणा है। इसलिए दोइन्द्रिय पर्याप्तसंयुक्त बन्ध करनेवाले दोइन्द्रिय पर्याप्त जीवकी स्थिति अपने उत्कृष्ट १. आ०प्रतौ सम्वत्थोवा इति पाठः । २. ता०प्रतौ असण्णिपंचिंदियणामकम्मसंजुत्तबंधस्स इति पाठः । अनन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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