________________
१३४
ध्रुवस्थितिकी अपेक्षा
ध्रुवस्थितिका प्रमाण ११५२ ध्रुवस्थिति
८ पल्य = ११५२
33
क्रमांक
१
८
९ से ११
१३ से १५
१६
१७
१८
१६
३१
४८
६४
१२८
१४४
...
२८८
...
...
Jain Education International
,,
www.
११५२
...
११५२
११५२
११५२
""
११५२
१९५२
११५२
११५२
११५२
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
११५२
बढ़ी हुई स्थिति
११५३
११५४
११६०
११६४
...
१९६
१९६६
११७०
११७१
११८३
१२००
१२१६
१२८०
१२६६
१४४०
भागद्दार
ध्रुवस्थिति ध्रुवस्थितिकाआधा
१४४
For Private & Personal Use Only
९६
७२
६७१
६४
६०११
३७५६
२४
१८
ε
C
४
[ द्विदिविहत्ती ३
वृद्धि
अ० भा० वृ०
33
""
139
...
-
"
""
""
"3
= = = =
...
...
संख्यात भागवृद्धि
११५२
११५२
२३०४
२ गुणकार
संख्यात गुणवृद्धि
इन दोनों संदृष्टियों के देखनेसे विदित होता है कि जहाँ पल्य में १४४ अंककी वृद्धि होनेपर संख्यातगुणवृद्धि प्रारम्भ हो जाती है वहाँ ध्रुवस्थिति में १४४ अंककी वृद्धि होनेपर संख्यातभागवृद्धिका ही प्रारम्भ होता है। कारण यह है कि पल्यका प्रमाण अल्प है और ध्रुवस्थितिका प्रमाण पल्यके प्रमाणसे संख्यातगुणा है, इसलिए जितने स्थान आगे जाकर पल्यका प्रमाण दूना होता है, ध्रुवस्थितिको दूना करनेके लिए उससे अधिक स्थान आगे जाना पड़ता है । इसी प्रकार अर्थसंदृष्टिमें भी जानना चाहिए ।
""
www.jainelibrary.org