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________________ वालोंका यह स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण है । तथा अन्य आचार्यों के अभिप्रायसे यह त्रसनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण है। कारणका निर्देश पृष्ठ ३६८ के विशेषार्थ में किया है। सम्यक्त्व और सम्याग्मिथ्यात्वको उत्कृष्ट स्थिति वेदकसम्यक्त्वकी प्राप्तिके प्रथम समयमें सम्भव है और ऐसे जीवोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण है, इसलिए यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। इस अपेक्षासे वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। इनकी अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंका उत्कृष्ट के समान स्पर्शन तो बन ही जाता है। साथ ही मारणान्तिक और उपपादकी अपेक्षा सर्वलोक प्रमाण स्पर्शन भी बन जाता है इसलिए यह उक्तप्रमाण कहा है। मोहनीयकी जघन्य स्थिति क्षपकश्रेणिमें प्राप्त होती है, इसलिए इसकी जघन्य स्थितिवालोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन है और मोहनीय की सत्तावाले जीव सर्व लोकमें पाये जाते हैं, इसलिए इसकी अजघन्य स्थितिवालोंका सर्वलोक प्रमाण स्पर्शन कहा है। उत्तर प्रकृतियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा इसी प्रकार स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिवालोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान और अजघन्य स्थितिवालोंका स्पर्शन अपने अनुत्कृष्टके समान है यह स्पष्ट ही है । तथा सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य स्थितिवालोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है यह भी स्पष्ट है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थिति देवोंके विहारादिके समय भी सम्भव है इसलिए इसवाले जीवोंका स्पर्शन वर्तमानकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीतकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। इसके अजघन्य स्थितिवालोंका स्पर्शन सर्वलोकप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। गति आदि मार्गणाओंमें अपनी अपनी विशेषताको जानकर इसी प्रकार स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए। काल-नाना जीव मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका एक समय बन्ध करके दूसरे समयमें न करें यह सम्भव है और अधिकसे अधिक पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक करते रहें यह भी सम्भव है, इसलिए मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । तथा इसको अनुत्कृष्ट स्थितिका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है। मोहनीयको छब्बीस उत्तरप्रकृतियोंकी अपेक्षा यह काल इसी प्रकार जानना चाहिए। मात्र सम्यक्त्व और सम्यग्मि स्थितिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीव कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होते हैं। तथा इनको अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है । मोहनीयकी जघन्य स्थितिवालोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है, क्योंकि क्षपकश्रेणिकी प्राप्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। तथा इसकी अजघन्य स्थितिवालोंका काल सर्वदा है । मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, बारह कषाय और तीन वेदवाले जीवोंका यह काल इसी प्रकार है। सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्क को जघन्य स्थितिवालोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। कारण स्पष्ट है। इनकी अजधन्य स्थितिवालोंका काल सर्वदा है। छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिवालोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि एक स्थितिकाण्डकघातमें इतना काल लगता है और उत्कृष्ट काल सर्वदा है । गति आदि मार्गणाओं में अपनी-अपनी विशेषता जानकर यह काल घटित कर लेना चाहिए । अन्तर-मोहनीय सामान्य और अट्ठाईस उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्थितिवालोंका जघन्य अन्तर एक समय है, क्योंकि एक समय के अन्तरसे उत्कृष्ट स्थितिकी प्राप्ति सम्भव है और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि उत्कृष्ट स्थितिबन्धके बाद उसका पुनः बन्ध होने में अधिकसे अधिक इतना अन्तरकाल प्राप्त होता है। इनकी अनुत्कृष्ट स्थितिवालोंका अन्तरकाल नहीं है यह स्पष्ट ही है। मोहनीयकी जघन्य स्थितिवालोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। अजघन्य स्थितिवालोंका अन्तरकाल नहीं है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, आठ कषाय और छह नोकषायोंकी अपेक्षा यह अन्तरकाल इसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए । सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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