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गा ०२२ ] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियसरिययासो अइप्पसंगादो।
* सोलसकसायाणमुक्कस्सहिदिविहत्ती विसेसाहिया।
८७३. बंधावलियमेत्तेण । * सम्मामिच्छत्तस्स उकस्सहिदिविहत्ती विसेसाहिया । ६८७४. केत्तियमेत्तेण ? अंतोमुहुत्तणतोससागरोवमकोडाकोडोमेशेण । * सम्मत्तस्स उक्कस्सहिदिविहत्ती विसे ।
८७५. के. मेत्तेण १ एगदयणिसेगहिदिमेत्तेण । चुण्णमुत्ते जइवसहाइरियो कम्हि वि कालपहाणं कादण हिदिवण्णणं कुणदि मिच्छत्तस्स संपुण्णसत्तरिसागरोवमकोडाकोडिहिदिपरूवणादो । कम्हि वि णिसेगपहाणं कादूग वण्णणं कुणदि; सम्मतुक्कस्सहिदि पेक्खिदूग सम्मामिच्छत्तुक्कस्सहिदीए देसूणत्तपरूवणादो, छण्णोकसायजहण्णहिदीए अंतोमुहुत्तमेत्तावहाणपरूवणादो च । उच्चारणाइरियो वि कम्हि वि कालपहाणं कादण हिदिवण्णणं कुणदि; सम्मत्तजहण्णहिदि पेक्खिदण मिच्छत्तजहण्णहिदीए संखेजगुणत्तपरूवणादो । कम्हि वि णिसेगपहाणं कादूण वण्णणं कुणदि; अणुअन्यथा अतिप्रसंग दोष आता है।
* ना नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिसे सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है।
६८७३. नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिसे सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति एक बन्धावलिकाल प्रमाण अधिक है।
* सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिसे सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है।
१८७४. शंका-कितनी अधिक है ? समाधान-अन्तमुहूर्त कम तोस कोड़ाकोड़ी सागर अधिक है ।
* सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिसे सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है।
१८७५. शंका-कितनी अधिक है ? समाधान-एक उदय निषेकको स्थितिप्रमाण अधिक है।
शंका-चूर्णिसूत्र में यतिवृषभ आचार्य कहीं कालकी प्रधानता करके स्थितिका वणन करते है, जैसे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थिति जो सत्तर कोडाकाड़ी सागरप्रमाण कही है वह कालकी प्रधानतासे कही है। कहीं निषेकोंका प्रधान करके स्थितिका वर्णन करते हैं, जैसे, सम्यक्त्वको उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए सम्यग्मिथ्यात्वको उत्कृष्ट स्थिति जो देशोन कही है और छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिकी जो अन्तमुहूतंप्रमाण अवस्थिति कही है वह निषेकोंकी प्रधानतासे ही कही है। इसी प्रकार उच्चारणाचार्य भी कहीं कालको प्रधान करके स्थितिका वर्णन करते हैं, जैसे सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिको देखते हुए जो मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति संख्यातगुणी कहीं
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