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________________ ५०७ गां० २२ ) हिदिविहत्तीए उत्तरपडिडिदिविहत्तियसरिणयासो जहण्णादो अजहण्णा समयुत्तरमादि कादृण जाव पलिदो० असंखे०भागब्भहिया । णवरि भयदुगुंछ० तिहाणपदिदा । सम्म सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अस्थि किं ज० अज० १ णि. अज० वेढाणपदिदा संखे०गुणा असंखेगुणा वा। सम्मामि० सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अस्थि, किं ज० अज. ? जहण्णा अजहण्णा वा, जहण्णादो अजहण्णा विहाणपदिदा संखे०गुणा असंखे० गुणा वा । अणंताणु०चउक्क० किं ज० अज० १ णि. अज० असंखे० गुणा । सत्तणोक० किं ज० अज ? णि. अज़० तिहाणपदिदा-असंखे०भागब्भहिया संखे भागभहिया संखे० गुणब्भहिया वा । एवं बारसकसाय० । भय० जह० मिच्छत्त-बारसक०-दुगुंछ० किं ज. [ अज० ] ? अज० तं तु समयुत्तरमादि कादूण जाव पलिदो० असंखे०भागब्भहिया । सेसं मिच्छत्तभंगो। एवं दुगुंछ । सम्मत्त ज० विहत्ति० बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० १ णि० अज० संखे गुणा । सम्मामि० ज० विहत्ति मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० किं० ज० अज? जहण्णा अजहण्णा वा। जहण्णादो अजहण्णा तिहाणपदिदा असंखे०भागन्भहिया संखे भागभ० खे० गुणा वा। अणंताणु०चउक्क० किं ज० अज० १ णि. अज० जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । उनमेंसे अजघन्य स्थिति एक समय अधिक जघन्य स्थितिसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग अधिक तक होती हे। किन्तु इतनी विशेषता है कि भय और जुगुप्साकी स्थिति तीन स्थानपतित होती है। सम्यक्त्व कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो उसकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो संख्यातगुणी अधिक या असंख्यात गुणी अधिक इन प्रकार दो स्थान पतित होती है । सम्यग्मिथ्यात्व कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो उसकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भी। उनमेंसे अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा-संख्यात गुणी अधिक या असंख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थानपतित होती है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति क्या जघन्य होता है या अजवन्य नियमसे अजघन्य होती है जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है । सात नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य हाती है जो असंख्यातवें भाग अधिक संख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार तीन स्थान पतित होती है । इस प्रकार बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जावोंके सन्निकर्ष जानना चाहिये । भयकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य १ नियमसे अजघन्य होती है। फिरभी वह अपनी जघन्य स्थितिको अपेक्षा एक समय अधिकसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग अधिकतक होती है। शेष भंग मिथ्यात्वके समान है । इसी प्रकार जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। सन्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भी। उनमेंसे अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक, संख्यातवें भाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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