SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 523
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०४ जयघवलासहिदे कसायपाहुडे . [द्विदिविहत्ती ३ तिहाणपदिदा असंखे० भागब्भहिया संखे०भागभहिया संखे०गुणा वा । दुगुंछ० किं ज० अज० ? णि. जहण्णा । सेसं मिच्छत्तभंगो । एवं दुगुका।। ८५० तिरिक्खगईए तिरिक्खसु मिच्छत्त० ज. विहत्ति बारसक०-भयदुगंछ० किं ज० अज० ? जहण्णा अजहण्णा वा । जहण्णादो अजहण्णा समयुत्तरमादिं कादण जाव पलिदो० असंखे० भागब्भहिया । सम्मत्त० सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि, किं ज० अज० ? णि अज० वेहाणपदिदा संखे०गुणा असंखे०गणा वा । सम्मामि० सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि किं ज० अज० १ जहण्णा अजहण्णा वा । जहण्णादो अजहण्णा वेढाणपदिदा संखेगुणा असंखे०गुणा वा । अणंताणु०चउक्क० किं ज० अज ? णि. अज०-असंख० गुणा । सत्तणोक. किं ज० अज० ? णि. अज० असंखे भागब्भहिया। एवं बारसक० । णवरि बारसकसाएसु एक्कदरस्स जहण्णहिदीए णिरुद्धाए भय-दुगुंछाओ किं ज० [अज० ] ? अज०, तंतु समयुत्तरमादिं कादूण जाव आवलियब्भहियारो । सम्मत्त० ज० विहत्ति० बारसक०णवणोक० किं ज० अज० ? णियमा अज० संखे०गुणा। सम्मामि० जह• विहत्ति. नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जयन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक, संख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार तीन स्थान पतित होती है। जुगुत्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। शेष प्रकृतियोंका भंग मिथ्यात्वके समान है । इसी प्रकार जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। ५० तिर्यंचगतिमें तिर्यंचोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । उनमेंसे अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा एक समय अधिकसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग अधिक तक होती है। सम्यक्त्वप्रकृति कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो उसकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी अधिक या असंख्यात गुणी इस प्रकार दो स्थानपतित होती है । सम्यग्मिथ्यात्व कदाचित् है और कदाचित् नहीं है। यदि है तो उसकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । उनमें से अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी या असंख्यातगुणी इस प्रकार दो स्थानपतित होती है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है । सात नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवेंभाग अधिक होती है। इसी प्रकार बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष कहना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषायोंमेंसे किसी एक कषायकी जघन्य स्थितिके रुके रहने पर भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे एक समय अधिकसे लेकर एक आवलितक अधिक होती है। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जोवके बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो अपनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy