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________________ गा० २२] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियसरिणयासो ४६७ ४६७ संखे०गणा । लोभसजल. किं जह• अजह ? णियमा अज० असंखेगणा । पंच-. णोक० किं जह० अज• ? णियमा जहण्णा । एवं पंचणोक ।। ___ ८४५. कोधसंजल० जह० विहत्तियस्स दोसंजल० किं जह० अजह० १ णियमा अज० सज्जगुणा । लोभ० किंज. अज० १ णियमा अज०, असंखे गुणा । माणसंज० जह० विहत्तियस्स मायासंज० किं .ज. अज० ? णियमा अज० संखे गुणा । लोभ किं ज० ज० १ णियमा अज०, असंखे० गुणा । मायासंजल० जह० विहत्ति० लोभ. किं ज० अज० ? णियमा अज० असंखे०गुणा । . ८४६. लोभसंज. जह० हिदि० सेसंणत्थि । एवं मणुस-मणुसपज्ज०मणसिणी-पंचिंदिय-पंचिं०पज्ज०-तस-तसपज्ज०-पंचमण०-पंचवचि०-कायजोगि०ओरालि०-लोभक०-चक्खु०-अचक्खु०-सुक्क०-भवसि०-सण्णि०-आहारि त्ति । णवरि मणुसपज्जत्तएसु इत्थि, जहण्णहिदिविहत्तियस्स चदुसंजल०-सत्तणोक० णियमा अज० असंखेगुणा । णवंस० सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि, णियमा अज० असंखेगुणा । मणुस्सिणीसु णवुस० ज० हिदिवि० चदुसंज-अहणोक० णियमा स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। लोभ संज्वलनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगणी होती है। पाँच नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार पाँच नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ण जानना चाहिये। ९८४५ क्रोध संज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके दो संज्वलनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है । जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। लोभ संज्वलनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। मानसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मायासंज्वलनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। लोभसंज्वलनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। मायासंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके लोभसंज्वलनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। ९८४६. लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थिति विभक्तिके धारक जीवके शेष प्रकृतियाँ नहीं पाई जाती हैं। इसी प्रकार अर्थात् ओघके समान मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी, पंचेन्द्रिय. पंचेन्द्रियपर्याप्त, प्रस, त्रस पर्याप्त, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, लोभ कषायवाले, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, शुक्ललेश्यावाले, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्य पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेदकी जघन्य स्थिति विभक्तिके धारक जीवके चार संज्वलन और सात नोकषायोंकी नियमसे अजघन्य स्थिति होती है और वह जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। तथा नपुंसकवेद कदाचित् है और कदाचित् नहीं है। यदि है तो उसकी स्थिति नियमसे अजघन्य होती है, जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। मनुष्यनियोंमें नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके चार संज्वलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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