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________________ गा० २२ हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियसरिणयासो ६७३४. संपहि पण्णारसमवियप्पे भण्णमाणे मिच्छत्तु क्कस्सहिदि समयूणादिकमेण बंधाविय पडिहग्ग-सम्मत्त-मिच्छत्तद्धाओ समयुत्तरादिकमेण वड्डाविय पुणो मिच्छत्त क्कस्सहिदि बंधाविय ओदारेदव्वं जाव सम्मत्तदुसमयकालेगा हिदि त्ति । एवमोदारिदे पण्णारसमपरूवणा समत्ता होदि १५ । -७३५ अहवा पण्णारसमपरूवणा एवं वत्तव्वा । तं जहा-धुवहिदीए समयूणाए ऊणुक्कस्सहिदिसमयरयणं काऊण पुणो पडिहग्ग-सम्मत्त-मिच्छत्ताणं जहण्णदाओ सगसगुक्कस्सद्धासु जहण्णद्धाहिंतो संखेज्जगुणासु सोहिय रूवाहियं कादण पुध पुध एदेसि पि समयाणं पंतियागारेण रयणं काऊण पुणो चत्वारि अक्खे चदस पंतीसु दृविय तत्थ अंतिमअक्खो ताव संचारेयव्वो जावप्पणो समयपंतीए अंतं पत्तो त्ति । पुणो तमक्खं तत्थेव हविय तदियक्खो कमेण संचारेयव्वो जावप्पणो समयपंतिपज्जवसाणं पत्तो त्ति । पुणो तं पि तत्थेव हविय विदियक्खं कमेण संचारिय अप्पणो समयपंतिरयणाए अंतम्मि जोजये। तदो तिहमद्धाणं समयपंतिरयणसंकलणाए जतिया समया तत्तियमेचसमए एगवारेण पढमक्खो ओयारेयव्वो। पुणो सेसतिण्णि वि अक्खे तिण्णं पंतीणं पढमसयएमु ठविय पुव्वं व अक्खसंचार काऊण तदो तचियमेवं चेवद्धाणं पुणो वि पढमक्खो पढमसमयपंतीए ओयारेयव्यो । एवं पणो पुणो ताव कायव्वं जाव पढमक्रवो पढमपंतीए अंतं पत्तो चि। पुणो सेसतिण्णि ६७३४. अब पन्द्रह विकल्पके कथन करने पर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका एक समय कम, दो समय कम इत्यादि क्रमसे बन्ध करावे तथा मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके कालको तथा सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके कालको एक समय, दो समय इत्यादि क्रमसे उत्तरोत्तर बढ़ाता जावे । धुनः मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराके सम्यक्त्वकी दो समय कालप्रमाण एक । दो समय कालप्रमाण एक स्थितिके शेष रहने तक उसकी स्थितिको घटाता जावे । इस प्रकार सम्यक्त्वकी स्थितिके घटाने परपन्द्रहवीं प्ररूपणा समाप्त होती है। ६७३५. अथवा पन्द्रहवीं प्ररूपणाका इस प्रकार कथन करना चाहिये। आगे उसीको .ताते हैं-उत्कृष्ट स्थितिमें एक समय कम ध्रुवस्थितिको कम करके जो शेष रहे उसके समयोंकी रचना करे । पुनः मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके जघन्य कालको तथा सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके जघन्य कालोंको जघन्य कालोंसे संख्यातगुणे अपने अपने उत्कृष्ट कालों में से घटाकर और एक अधिक करके अलग अलग इनके भी समयोंकी पंक्तिरूपसे रचना करे । पुनः चारों पंक्तियोंमें चार अक्षोंकी स्थापना करके उनमेंसे अन्तिम अक्षका अपनी समयपंक्तिके अन्तको प्राप्त होने तक संचार करते रहना चाहिये । पुनः उस अक्षको वहीं पर स्थापित करके तृतीय अक्षका अपनी समयपंक्तिके अन्तको प्राप्त होने तक क्रमसे संचार करते रहना चाहिये । पुनः इस अक्षको भी वहीं पर स्थापित करके दूसरे अक्षको क्रमसे संचार कराके अपनी समयपंक्तिरचनाके अन्तको प्राप्त करावे । तदनन्तर तीनों कालोंकी समयपंक्तिरचनाके जोड करने पर जितने समय हों प्रेथमाक्षको उतने समयप्रमाण एक वारमें उतारे । पुनः शेष तीनों ही अक्षोंको तीनों पंक्तियों के पहले समयोंमें स्थापित करके और पहलेके समान अक्षसंचार करके तदनन्तर प्रथम अक्षको उतने समय प्रमाण प्रथम पंक्तिमें उतारे। इस प्रकार जब तक पहला अक्ष पहली पंक्तिमें अन्तको प्राप्त होवे तब तक पुनः पुनः इसी प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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