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________________ ४३० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [द्विदिविहत्ती ३ पादिदे सम्मत्तधुवहिदीदो समयूणा सम्मत्तहिदी होदि । ताधे चेव मिच्छत्तु कस्सहिदीए बद्धाए अवरो सण्णियासवियप्पो होदि । पुणोतदणंतरविदियजीवेण उव्वेल्लणकंडए पादिदे सेससम्मत्तहिदी सम्मत्तधुवहिदीदो दुसमयूणा होदि । ताधे तेण मिच्छत्तु कस्सहिदीए पबद्धाए अण्णो सण्णियासवियप्पो होदि । पुणो तदियजीवेण उव्वेल्लणकंडए खंडिदे सेससम्मत्तहिदी सम्मत्तधुवहिदीदो तिसमयूणा । तत्थ तेण मिच्छत्त कस्सहिदीए पबद्धाए अण्णो सण्णियासवियप्पो होदि । पुणो चउत्थजीवेण उव्वेल्लणकंडए खंडिदे सेससम्मत्तहिदी सम्मत्तधुवहिदीदो चदुसमयूणा । ताधे तेण मिच्छत्तु कस्स हिदीए पबद्धाए अण्णो सण्णियास वियप्पो होदि। पंचमजीवेण उव्वेल्लणकंडए खंडिदे तत्थ सेससम्मत्तहिदी सम्मत्तधुवहिदीदो पंचहि समएहि ऊणा। एदेण कमेण चरिमजीवेणुव्वेल्लकंडए खंडिदे तत्थ सेससम्मत्तष्ठिदी सम्मत्तधुवहिदीदो समयाहियउव्वेल्लणकंडएणूणा । ताधे तेण मिच्छत्त कस्सहिदीए पबद्धाए अण्णो सण्णियासवियप्पो लब्भदि । एवं पढमवारपरूवणा गदा । ७१७ एदं परूवणमवहारिय विदिय-तदिय-चउत्थादि जाव पलिदोवमस्स असंखे०भागमेत्तवारेसु उव्वेल्लणकंडए पादिय मिच्छत्त कस्सहिदि बंधावि यसण्णियासवियप्पा उप्पाएदव्या । तत्थ चरिमुव्वेल्लणकंडयचरिमफालीए पादिदाए सम्मत्तहिदी सेसा समय॒णुदयावलियमेत्ता होदि । ताधे मिच्छत्त कस्सहिदीए पवद्धाए प्राप्त होती है। और उसी समय मिथ्यात्वकी उत्कष्ट स्थितिका बन्ध होने पर एक अन्य सन्निकर्षविकल्प प्राप्त होता है । पुनः तदनन्तर दूसरे जीवके द्वारा उद्वेलनाकाण्डकके घात करने पर सम्यक्त्व की शेष स्थिति सम्यक्त्वकी ध्र वस्थितिसे दो समय. कम होती है। तथा उसी समय उसके की उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होने पर एक अन्य सन्निकर्षविकल्प प्राप्त होता है। पुनः तीसरे जीवके द्वारा उद्वेलनाकाण्डकके खण्डित करने पर सम्यक्त्वकी शेष स्थिति सम्यक्त्वकी ध्रुव स्थितिसे तीन समय कम होती है । तथा उसी समय उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होने पर एक अन्य सन्निकर्ष विकल्प प्राप्त होता है। पुनः चौथे जीवके द्वारा उद्वेलनाकाण्डकके खण्डित करने पर सम्यक्त्वकी शेष स्थिति सम्यक्त्वकी ध्रुवस्थितिसे चार समय कम होती है । तथा उसी समय उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होने पर एक अन्य सन्निकर्ष विकल्प प्राप्त होता है। पुनः पांचवें जीवके द्वारा उद्वेलनाकाण्डकके खण्डित करने पर सम्यक्त्वकी शेष स्थिति सम्यक्त्वकी ध्रुवस्थितिसे पांच समय कम होती है। इसी क्रमसे अन्तिम जीवके द्वारा उद्वेलना काण्डकके खण्डित करने पर वहां सम्यक्त्वकी शेष स्थिति सम्यक्त्वकी ध्रुवस्थितिसे समयाधिक उद्वेलनाकाण्डकप्रमाण कम होती है । तथा उसी समय उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होने पर एक अन्य सन्निकर्षविकल्प प्राप्त होता है । इस प्रकार प्रथमबार प्ररूणा समाप्त हुई। ६७१७. इस प्रकार इस प्ररूपणाको समझ कर आगे दूसरी, तीसरी और चौथी बारसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भागबार उद्वेलनाकाण्डकोंका घात कराके और मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराके सन्निकर्षविकल्प उत्पन्न कर लेने चाहिये । उसमें भी अन्तिम उद्वेलनाकाण्डककी अन्तिम फालिके घात करनेपर सम्यक्त्वकी शेष स्थिति एक समय कम उदयावलिप्रमाण प्राप्त होती है। तथा उसी समय मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध होने पर एक अन्य सन्निकर्ष. मिथ्यात्वकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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