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गा० २२ ]
हिदिविहत्ताए उत्तरपयडिडिदिकालो ६५३७. आहारीसु मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-बारसक०-णवणोक० जह० ओघं । अज. जह. खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं, उक्क० सगहिदी। सम्मस०. सम्मामि० पंचिंदियभंगो। अणंताणु०चउक्क० जह० जहण्णुक्क० एगस० । अज. जह० अंतोमु० एगसमयो वा, उक्क० सगहिदी।
एवं कालाणुगमो समत्तो। बन्धी चतुष्ककी विसंयोजना करता है उसके विसंयोजनाके अन्तिम समयमें अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थिति होती है। जो चौबीस प्रकृतियों की सत्तावाला सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त होता है उसके अन्तिम समयमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थिति होती है, अतः सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी प्रथक्त सागर स्थितिकी सत्तावाला जो मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होता है उसके अन्तिम समयमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति होती है, अतः सम्यग्मिथ्यादृष्टिके इनकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थिति अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाले सन्यग्मिथ्यादृष्टिके अन्तिम समयमें होती है, अतः इसके अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। तथा इसके सब प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त होता है यह स्पष्ट ही है। जो उपशमश्रेणीसे गिरकर सासादनभावको प्राप्त होता है उसके सासादनके अन्तिम समयमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति होती है, अतः सासादनसम्यग्दृष्टिके सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । तथा सासादन गुण स्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा सब प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह श्रावलिप्रमाण कहा। मिथ्यादृष्टियोंके सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका काल मत्यज्ञानियोंके समान होता है यह स्पष्ट ही है। असंज्ञी तिर्यञ्च ही होते हैं अतः सामान्य तिर्यञ्चोंके समान असंज्ञियोंके सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका काल जानना चाहिये । किन्तु सामान्य तिर्यञ्चोंमें संज्ञी तिर्यश्च भी सम्मिलित हैं और उनके अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना भी होती है तथा उनमें कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि भी उत्पन्न होता है, अतः असंज्ञियोंमें सम्यग्मिथ्यात्व सहित उक्त छह प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थिति सामान्य तिर्यंचोंके समान नहीं बन सकती है, फिर भी यहाँ जघन्य और अजघन्य स्थितिके कालकी मुख्यता है जो यथायोग्य एकेन्द्रियोंके सम्भव है, अतः असंज्ञियोंके उक्त प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिका काल एकेन्द्रियोंके समान कहा।
६५३७. आहारकोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायों की जघन्य स्थितिका काल ओघके समान है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थिति का भंग पंचेन्द्रियोंके समान है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त या एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है।
विशेषार्थ ओघसे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी
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