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________________ २५६ ... जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [हिदिविहत्ती ३ वलियमेत्तगोवुच्छानो चिट्ठति । पुणो तासु दुसमऊणावलियमेत्तासु अधहिदिगलणाए गालिदासु दुसमयकालेगणिसे यहिदिदसणादो। * अणंताणुबंधीणं जहणहिदिविहत्ती कस्स ? ४५३. सुगमं० । * जस्स विसंजोइदे दुसमयकालढिदियं सेसं तस्त । ४५४. सुगममेदं ओघम्मि परू विदत्तादो । * सेसं जहा उदीरणार तहा कायव्वं । ४५५. एदस्स अत्यो वुच्चदे-मिच्छत्त-वारसकसाय-भय-दुगुंछाणं जहण्णहिदिविहत्ती कस्स ? जो असण्णिपंचिंदिओ सागरोवमसहस्समेत्तउक्कस्सहिदिबंधादो पलिदोवमस्स संखेजदिभागेण जहा ऊणं होदि उक्स्सद्विदिसंतकम्मं तहा घादिय जहण्णहिदिसंतं करिय पुणो जहण्णसंतादो हेहा अंतोमुत्तकालं संखे०भागहीणं पुव्वं बंधमाणो अच्छिदो जहण्णहिदिसंतकदसमए चेव जहण्णहिदिसंतसमाणं बंधिय तदो से काले जहण्णहिदिसंतं बोलेदूण बंधिहिदि त्ति तावणियरगदीएसमयविग्गहं काऊण णेरइएसुबवण्णो तत्थ दोसु वि विग्गहसमएसु असण्णिपंचिंदियहिदि चेव बंधदि असण्णिउद्वेलना काण्डककी अन्तिम फालिके पतन करने पर एक समय कम आबलिप्रमाण गोपुच्छ शेष रहते हैं। पुनः उसके दो समय कम आवलिप्रमाण उन गोपुच्छोंके अधःस्थितिगलनाके द्वारा गला देने पर एक निषेककी दो समय कालप्रमाण स्थिति देखी जाती है। इससे प्रतीत होता है कि अपनी उद्वेलनाके अन्तिम समयमें सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। * नारकियोंमें अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? ६४५३ यह सूत्र सुगम है। * विसंयोजना करने पर जिस नारकीके अनन्तानुबन्धीकी दो समय काल प्रमाण स्थिति शेष है उसके अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है।। ४५४ यह सूत्र सरल है, क्योंकि इसका कथन ओघप्ररूपणामें कर आये हैं। नारकियोंके उपयुक्त प्रकृतियोंके अतिरिक्त शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति जिस प्रकार उदीरणामें होती है उस प्रकार कहनी चाहिये । ६४५५. अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं-मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्ति किस नारकीके होती है ? जो असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव हजार सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिबन्धमें से पल्योपमका संख्यातवाँ भागप्रमाण कम जिस प्रकार होवे उस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्मका घात करके जघन्य स्थिति सत्कर्मको प्राप्त करता है। तथा जघन्य स्थिति सत्कर्मके नीचे पहले अन्तर्मुहूर्त कालतक पल्योपमके संख्यातवें भाग प्रमाण कम स्थितिको बांधता हुआ स्थित है पुनः जघन्य स्थितिसत्त्वके होनेके समय ही जघन्य स्थितिसत्वके समान स्थितिको बांधकर उसके अनन्तर काल में जब जघन्य स्थितिसत्वको उल्लंघकर बांधेगा तब दो समयका विग्रह करके नरकगतिमें नारकियोंमें उत्पन्न हुआ। पर वहां विग्रहके दोनों ही समयोंमें असंज्ञी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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