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________________ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिसामित्त ___ * लोहसंजलणस्स जहण्णहिदिविहत्ती कस्स ? . ४३८. सुगममेदं । * खवयस्स चरिमसमयसकसायस्स । ___$ ४३९. दुचरिमादिसमयपडिसेहट्टो चरिमसमयसकसायणि सो । किमह तप्पडिसेहो कीरदे ? दोतिरिणआदिणिसेगेसु हिदेसु जहण्णट्ठिदिविहत्ती ण होदि त्ति जाणावण । चरिमसमयसुहुमसांपराइयस्स अधहि दिगलणाए गालिददुचरिमादिणिसेयस्स हिदिकंडयघादेण घादिदासेसउवरिमहिदिणिसेयस्स एगोदयणिसेगे वट्टमाणस्स जहण्ण हिदिविहत्ति त्ति भणिदं होदि । * इस्थिवेदस्स जहण्णहिदिविहत्ती कस्स ? .. ४४०. सुगम०। * चरिमसमयइथिवेदोदयखवयस्स । ४४१. दुचरिमसमयसवेदो किण्ण जहण्णहिदिसामिओ ? ण, पढमहिदीए * लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? ४३८. यह सूत्र सुगम है। * कषायसहित क्षपक जीवके अन्तिम समयमें लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। ४३६. द्विचरमसमय आदिका निषेध करनेके लिये सूत्रमें 'चरिमसमयसकसायस्स' । पदका निर्देश किया है। शंका-द्विचरमसमय आदिका निषेध किसलिये किया है ? । समाधान-दो, तीन आदि निषेकोंके स्थित रहनेपर जघन्य स्थितिविभक्ति नहीं होती है इस बातका ज्ञान करानेके लिये द्विचरमसमय आदिका निषेध किया है। जिसने द्विचरम आ.द निषेकोंको अधःस्थिति गलनाके द्वारा गालित कर दिया है, जिसने स्थितिकाण्डकघातके द्वारा ऊपरके समस्त स्थितिनिषेकोंका घात कर दिया है और जो एक उदयरूप निषेकमें विद्यमान है उस सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवके अन्तिम समयमें जघन्य स्थितिविभक्ति होती है यह उक्त सूत्रका अभिप्राय है। ____* स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? " ६ ४४०. यह सूत्र सुगम है। के तपक जीवके स्त्रीवेदके उदयके अन्तिम समयमें स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। ६४४१. शंका-द्विचरम समयवाला सवेद जीव जघन्य स्थितिका स्वामी क्यों नहीं होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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