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________________ १८६ . जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती जीवा संखेगुणा । एवं कायजोगि०-णवूस०-चत्तारिफसाय-अचक्खु-भवसि०आहारि त्ति । ___३४४. आदेसेण णेरइएसु सव्वत्थोवा संखे०गुणहाणिवि० जीवा । संखे०गुणवड्रिवि. जीवा विसेसाहिया । संखे भागवडि-संखे०भागहाणि विहत्तिया जीवा दो वि सरिसा संखे०गुणा । असंखे०भागवडिवि० जीवा असंखे०गुणा । अवहिदवि० जीवा असंखे०गुणा । असंखे०भागहाणिवि० जीवा संखे गुणा । एवं पढमाए पुढवीए सव्वपंचि०तिरिक्ख-मणुसअपज्ज-देव०-भवण०-वाण-पंचिंदियअपज्जतेत्ति । विदियादि जाव सत्तमि त्ति सव्वत्थोवा संखे गुणवडि-हाणिवि. जीवा दो वि सरिसा। संखेजभागवडि-हाणिविह० जीवा दो वि सरिसा संखो गुणा। असंखोज्जभागवडिवि० जीवा असंखेगुणा । अवहिदवि० जीवा असंखे०गुणा । असंखे०भागहाणिवि० जीवा संख०गुणा। ३४५. तिरिक्खा ओघं । णवरि सव्वत्थोवा संखेज्जगणहाणिविह० जीवा त्ति वत्तव्वं । एवमोरालियमिस्स-कम्मइय०-मदि-सुद०-असंजद-किण्ह-णीलकाउ०-अभव ०-मिच्छा० असएिण-अणाहारि त्ति । $ ३४६. मणुस्सेसु सव्वत्थोवा असंखो गुण हाणिवि० जीवा । संख० गुणहैं। इनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार काययोगी, नपुंसकवेदवाले क्रोधादि चारों कषायवाले, अचक्षुदर्शनवाले, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। $३४४. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें संख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिवाले जीव समान होते हुए भी संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यात गणे हैं । इसी प्रकार पहली पृथ्वीके नारकी, सभी पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य अपर्यास्त,सामान्य देव, भवनवासी, व्यन्तरदेव और पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके जानना चाहिये। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानि इन दोनों पदवाले जीव समान होते हुए भी सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानि इन दोनों पदवाले जीव समान होते हुए भी संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। ६३४५. तिथंचोंमें अल्पबहुत्व ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि इनमें संख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं ऐसा कहना चाहिये। इसी प्रकार औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये । ६३४६. मनुष्योंमें असंख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे संख्यातगुणहानि imarriwarwwwwwwwwwwwwwwwwwwww Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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