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________________ विषय ( १२ ) विषय शेष प्रकृतियों की अपेक्षा भङ्गविचय ३५१ मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, आठ कषाय उच्चारणाके अनुसार भङ्गविचय ३५१-३५३ | और छह नोकषाय ४१०-४११ भागाभागानुगम ३५४-३५७ सम्यग्मिध्यात्व और अनन्ताउत्कृष्ट भागाभागानुगम ३५४-३५५ नुबन्धी चार ४११ जघन्य भागाभागानुगम ३५६-३५७ तीन संज्वलन और पुरुषवेद ४१२-४१३ परिमाणानुगम ३५८-३६३ लोभसंज्वलन ४१३ उत्कृष्ट परिमाणानुगम ક-રૂપ स्त्रीवेद और नपुंसकवेद ४१३-४१४ जघन्य परिमाणानुगम ३६०-३६३ नरकगतिमें सब प्रकृतियोंके अन्तर क्षेत्रानुगम ३६४-३६७ __ का विचार ४१५ उत्कृष्ट क्षेत्रानुगम ३६४ उच्चारणाके अनुसार जघन्य अन्तर ४१५-४२४ जघन्य क्षेत्रानुगम ३६५-३६७ भावानुगम ४२४-४२५ स्पर्शनानुगम ३६८-३८७ उत्कृष्ट भावानुगम ४२४ उत्कृष्ट स्पर्शनानुगम ३६८-३७८ उपशान्तकषाय गुणस्थानमें सब अोषसे स्त्रीवेद और पुरुषवेदमें । प्रकृतियोंका औदयिक भाव स्पर्शनके मतभेदका निर्देश ३६८ कैसे बनता है इस शंकाका जघन्य स्पर्शनानुगम ३७६-३८७ परिहार ४२४ तिर्यञ्चोंमें कुछ प्रकृतियोंकी अपेक्षा जघन्य भावानुगम ४२४-४२५ __ स्पर्शनमें पाठभेद ३८० सन्निकर्ष ४२५-५२४ नाना जीवों की अपेक्षा काल ३८७-४०६ उत्कृष्ट सन्निकर्ष ४२५-४६४ उत्कृष्ट काल ३८७-३६४ | मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका आल- . सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके ___ म्बन लेकर सन्निकर्ष विचार ४२५-४५४ उत्कृष्ट कालका स्वतन्त्र निर्देश ३८३-३८६ | सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिका आलउच्चारणाके अनुसार उत्कृष्ट काल । ३८६-३६४ म्बन लेकर सन्निकर्ष विचार ४५५-४५८ जघन्यकाल ३६४-४०६ सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, बारह कषाय अवलम्बन लेकर सन्निकर्ष विचार ४५८-४५६ और तीन वेद ३६४-३६५ | सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्ता ___आलम्बन लेकर सन्निकर्ष विचार ४५६ नुबन्धी चार ३६५-३६६ / स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिका आलम्बन छह नोकषाय ३६६ | लेकर सन्निकर्ष विचार ४५६-४७२ उच्चारणाके अनुसार जघन्य काल ३६६ | शेष प्रकृतियोंकी अर्थात् हास्य, रति, चूर्णिसूत्र, वप्पदेवकी उच्चारणा ___ और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिका और वीरसेन द्वारा लिखित आलम्बन लेकर सन्निकर्ष विचार ४७२-४७५ - उच्चारणामें पाठभेदका निर्देश ३६८-४०६ | मतभेदका उल्लेख । ४७४ नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर ४०६-४२४ | नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिका आलउत्कृष्ट अन्तर ४०६-४१० म्बन लेकर सन्निकर्षका निर्देश ४७६-४८२ सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अन्तर ४०६-४०७ अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उच्चारणाके अनुसार उत्कृष्ट अन्तर ४०६-४१० उत्कृष्ट स्थितिका आलम्बन लेकर जघन्य अन्तर ४१०-४२४ । सन्निकर्षका निर्देश . ४८२-४८५ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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