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________________ विषय भावानुगम अल्पबहुत्वानुगम उत्कृष्ट अल्पबहुत्वानुगम जघन्य अल्पबहुत्वानुगम भुजगार के १३ अनुयोगद्वार समुत्कीर्तनानुगम स्वामित्वानुगम कालानुगम अन्तरानुगम ६८ - १०८ १०८-१११ नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्ग विचय १११ - ११३ भागाभागानुगम परिमाणानुगम क्षेत्रानुगम स्पर्शनानुगम कालानुगम अन्तरानुगम भावानुगम अल्पबहुत्वानुगम पदविक्षेपके ३ अनुयोगद्वार समुत्कीर्तना • उत्कृष्ट समुत्कीर्तना' जघन्य समुत्कीर्तना स्वामित्वानुगम उत्कृष्ट स्वामित्वानुगम जघन्य स्वामित्वानुगम अल्पबहुत्व उत्कृष्ट अल्पबहुत्व जघन्य अल्पबहुत्व वृद्धिके १३ अनुयोगद्वार समुत्कीर्तना स्वामित्वानुगम कालानुगम अन्तरानुगम नाना जीवों की अपेक्षा भङ्गविचय भागाभागानुगम परिमाणानुगम क्षेत्रानुगम स्पर्शनानुगम ( १० ) पृष्ठ ६३ कालानुगम ६३-६५ अन्तरानुगम ६३-६४ भावानुगम ६४-६५ अल्पबहुत्वानुगम स्थानप्ररूपणा ६५- १२७ Jain Education International ६५-६६ ६६-६७ १२= १२६ विषय १२६-१३३ १३३-१३४ १३४ - १३५ १३४-१३५ उत्तरप्रकृतिस्थितिविभक्ति अर्थपद और उसकी व्याख्या स्थिति पदकी व्याख्या | ११३ - ११४ १९४ - ११५ ११६-११७ ११७- १२० | अद्धाच्छेद १२१-१२२ | उत्कृष्ट स्थिति श्रद्धाच्छेद १२३ - १२५ | मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति १२६ १२६-१२७ १२७ १३५ | सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति १२७- १२= | नौ नोकपायोंकी उत्कृष्ट स्थिति १२७-१२= चारों गतियों में सब कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति १४ मार्गणाओं में उच्चारणा के अनुसार उत्कृष्ट स्थिति उत्तरप्रकृति पदकी व्याख्या चौबीस अनुयोग द्वार अनुयोगद्वारोंका नाम निर्देश भुजगार आदि अनुयोगद्वारोंका २४ अनुयोगद्वारों में अन्तर्भाव जघन्य स्थिति अद्धाच्छेद मिध्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और For Private & Personal Use Only 32 "" "" १८५-१८६ १८६ - १६० १६१-५४४ १६१-१६२ "" पृष्ठ १७५-१८० १८० - १८५ १८५ बारह कषायोंकी जघन्य स्थिति २०३ - २०५ " १३५ | सम्यक्त्व, लोभसंज्वलन, स्त्रीवे १३६-१८६ और नपुंसकवेदकी जघन्य स्थिति २०५ - २०७ १३६-१३७ | क्रोधसंज्वलनकी जघन्य स्थिति २०७-२०८ २०८-२०६ २०६ १३८ - १४९ मानसंज्वलनकी १४१-१४६ | मायासंज्वलनकी १४६ - २६० पुरुषवेदकी १६० - १६४ छह नोकषायों की १६४ - १६६ |गतियों में जघन्य स्थिति जानने १६६ - १६८ की सूचना " "" १६८ - १६६ १६६ - १७५ १४ मार्गणाओं में उच्चारणा के अनुसार जघन्य स्थिति "" १६२ १६२ १६३-५४४ १६३ १६३ १६४-२१४ १६४ - २०२ १६४-१६५ १६५-१६६ १६७ १६७-१६८ १६६ १६६-२०२ २०२-२१४ २०६-२१० २१० २११ २११-२२५ www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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