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गा० २२]
हिदिविहत्तीए भुजगारे सामित्त सम्मादिहिस्स मिच्छाइहिस्स वा । एवं सत्तसु पुढवीसु तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्वतियमणुसतिय-देव-भवणादि जाव सहस्सार-पंचिदिय-पंचिं०पज-तस-तसपज्जापंचमण-पंचवचि०-कायजोगि०-ओरालि०-ओरालियमिस्स०-उब्विय०-वेउन्वियमिस्स०-कम्मइय०--तिण्णिवेद-चत्तारिकसा०-असंजद-चक्खु०-अचक्खु०-पंचलेस्साभवसिद्धि०-सण्णि-आहारि०-अणाहारि त्ति ।
१७२. पंचिंदियतिरि०अपज्ज. मोह. भुज. अप्पद० अवहि० कस्स ? अण्णदरस्स | एवं मणुसअपज्ज०-सव्वएइंदिय-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपज्जापंचकाय-तसअपज्ज०-मदि-सुदअण्णाण-विहंग०-अभव०-मिच्छादि-असण्णि त्ति।
६ १७३. आणदादि जाव उवरिमगेवज्जे त्ति अप्पदर० कस्स ? अण्ण० सम्मादिहिस्स मिच्छादिहिस्स वा। [एवं सुक्क ।]णवाणुद्दिसादि जाव सव्वोत्ति अप्पदर कस्स? अण्णदरस्स सम्माइहिस्स। एवमाहार-आहारमिस्स०-अवगद-अकसा०-आभिणि०सुद-अोहि-मणपज्ज०-संजद०-सामाइय०-छेदो०-परिहार०-सुहुमसापराय०जहाक्खाद०संजद-संजदासंजद-ओहिदंस-सम्मादि०-खइय०-वेदग०-उवसम०सासण-सम्मामिच्छादिहि त्ति ।
एवं सामित्ताणुगमी समत्तो।
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सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीवके होती है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सामान्य तिर्यंच, पंचेन्द्रियतिर्यंचत्रिक, मनुष्यत्रिक, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्त्रार स्वर्गतकके देव, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, बस, बस पर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी,
औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, तीनों वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, असंयत, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, कृष्णादि पांच लेश्यावाले, भव्य, संज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये।
६ १७२. पंचेन्द्रिय तियेच अपर्याप्तकोंमें मोहनीयकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्ति किसके होती है ? किसी भी जीवके होती है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, पांचों स्थावरकाय, बस अपर्याप्त, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंके जानना चाये।
६ १७३. आनत कल्पसे लेकर उपरिम अवेयक तकके देवोंमें अल्पतर स्थितिविभक्ति किसके होती है ? किसी भी सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीवके होती है। इसी प्रकार शुक्ल लेश्यावालोंके कहना चाहिये। नौ अनुदिशिसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें अल्पतर स्थितिविभक्ति किसके होती है ? किसी भी सम्यग्दृष्टि जीवके होती है। इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी,अपगतवेदी,अकषायी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी,मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत,छेदोपस्थापनासंयत,परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत, यथाख्यातसंयत, संयतासंयत, अवधिदर्शनवाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-इस बातका उल्लेख हम पहले कर आये हैं कि मिथ्याद्दष्टिके भुजगार आदि तीनों
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