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________________ चित्र परिचय देशी बोलीमें 'भाग्य' को 'भाग' कहते हैं और जिनका भाग सराहने योग्य होता है उन्हें भागचन्द्र कहते हैं । डोंगरगढ़निवासी दानवीर सेठ भागचन्द्रजी ऐसे ही व्यक्तियोंमेंसे एक हैं। यह इसलिए नहीं कि वे आधुनिक साजसज्जावाले सुन्दर मकानमें रहते हैं, उनके यहाँ निरंतर दस-पाँच नौकर लगे रहते हैं और वहाँकी परिस्थितिके अनुरूप वे साधनसम्पन्न हैं बल्कि इसलिये कि उन्हें पुराने और नये जो भी साधन मिले हैं, अपनी परिस्थितिके अनुरूप वे उनका उपयोग लोकसेवा व सांस्कृतिक और सामाजिक कार्योंमें करना जानते हैं। . लगभग दस वर्ष पूर्व सेठ सा० से हमारी प्रथम भेट हुई थी। उस समय वे मोटर अपघातसे पीड़ित हो अस्पतालमें पड़े हुए थे। सेठ सा०को छाती व सिरमें मुदी चोट आई थी, इसलिए उनके दाएँ-बाएँ कई परिचारक परिचर्या में लगे हुए थे, डाक्टर कुरसी डालकर सिरहाने बैठा हुआ था और दस-पाँच नाते रिश्तेदार व मित्र दौड़धूप कर रहे थे। किसीको मिलने नहीं दिया जाता था। बातचीत करना तो दूरकी बात थी। हमें केवल दूरसे देखनेभरका अवसर मिला था। हम चाहते मी नहीं थे कि ऐसी परिस्थितिमें उनसे किसी प्रकारकी बातचीत की जाय । किन्तु उनकी सतर्क अांखोंने हमें पहिचान लिया और डाक्टरके लाख मना करनेपर भी वे बोलनेसे अपने आपको न रोक सके। पासमें बुलाकर कहने लगे-'पण्डितजी आप आगये, अच्छा हुआ। हमारी सेवा स्वीकार किये बिना आप जा नहीं सकते। सिर्फ दो दिन रुकें। इतने में ही हम इस लायक हो जायँगे कि आपसे . चन्द मिनट बातचीत कर सकें और आपके मुखसे धर्मके दो शब्द सुन सकें। सेठ सा० एक भावनाप्रधान उत्साही व्यापारकुशल व्यक्ति हैं। वे किसी विद्वान्, त्यागी या अतिथिको अपने घर आया हुआ देखकर खिल उठते हैं और सपत्नीक हर तरहसे उसका आदर-सत्कार करनेमें जुट जाते हैं । कभी कभी तो ऐसा भी देखा गया है कि वे इस आवभगतमें लगे रहनेके कारण उस दिन करने योग्य अन्य आवश्यक कार्योंको भी भूल जाते हैं। इस कारण उन्हें काफी क्षति भी उठानी पड़ती है। सेठ सा० की मुख्य रुचिका विषय शिक्षा है। संस्कृत शिक्षा और छात्रवृत्ति पर गुप्त और प्रकाशरूपमें आप निरन्तर खर्च करते रहते हैं । रामटेक गुरुकुलके आप प्रधान आलम्बन हैं । एक मात्र इसीकी सेवाके उपलक्ष्यमें समाज द्वारा आप 'दानवीर' पदसे अलंकृत किये गये हैं। आप अपने गाँवमें एक हाइस्कूल खोलना चाहते थे। किन्तु हमारे यह कहने पर कि इस शिक्षापर खर्च करनेवाले बहुत हैं, आपको सांस्कृतिक और सामाजिक कार्योंकी ओर ही मुख्य रूपसे ध्यान देना चाहिये, सेठ सा० ने यह विचार त्याग दिया है। इधर आपका ध्यान साहित्यिक सेवाकी ओर भी गया है। श्री ग० वर्णी जैन ग्रंथमालाको आप निरंतर सहायता करते रहते हैं। हम जब भी डोंगरगढ़ जाते हैं, खाली हाथ नहीं लौटते । यह भी नहीं कि हमें माँगना पड़ता हो । चलते समय हजार-पाँचसौ जो भी देना होता है, स्वेच्छासे उपस्थित कर देते हैं। यह पूछने पर कि इसे किस मदमें खर्च किया जाय, एक मात्र यही उत्तर मिलता है कि आपकी इच्छा। __ श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैनसंघ एक पुरानी संस्था है। मुख्यरूपसे इसके सञ्चालक विद्वान् हैं। अब तक इस संस्थाने साहित्यसेवा और धर्मप्रचारके क्षेत्रमें जो सेवा की है और कर रही है वह किसीसे छिपी हुई नहीं है। शास्त्रार्थके वे दिन हमें आज भी याद आते हैं जब आर्यसमाजका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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