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________________ गा० २२) मूलपयडिविहत्तीए फोसणाणुगमो ८७. इत्थि०-पुरिस-विहत्ति० केव० खेत्तं पोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, अढ चोदसभागा वा देसूणा, सव्वलोगो वा । एवं विहंगणाणीणं वत्तव्वं । अवगद० विहत्ति० खेत्तभंगो। अविहत्ति० ओघभंगो। एवमकसाइ०-संजद०-जहाक्खाद० वत्तव्वं । भी ग्रहण किया है। पर यहां उनका ग्रहण नहीं करना चाहिये, क्योंकि, वे समस्त कर्मोंसे रहित होते हैं, अतः उनमें पंचेन्द्रिय आदि व्यवहार नहीं होता। मोहनीय विभक्तिवाले चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोंका सभी पदोंकी अपेक्षा वर्तमानकालीन और अतीतकालीन स्पर्श पंचेन्द्रियादिके समान है। किन्तु पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंके उपपाद पद नहीं होता, अतः इनका शेष पदोंकी अपेक्षा दोनों प्रकारका स्पर्श पंचेन्द्रियादिके समान ही है । पर पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, संज्ञी और चक्षुदर्शनी जीवोंमें मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान लोकका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, केवलिसमुद्धातमें मनोयोग और वचनयोग नहीं होता। तथा केवली संज्ञी और असंज्ञी दोनों प्रकारके व्यपदेशसे रहित हैं। तथा चक्षुदर्शन बारहवें गुणस्थान तक ही होता है। अतः इनके लोकका असंख्यात बहुभाग और समस्त लोक स्पर्श नहीं बन सकता। ७. स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार विभंग ज्ञानियोंके जान लेना चाहिये। अपगतवेदियोंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है, तथा मोहनीय अविभक्तिवाले अपगतवेदी जीवोंका स्पर्श ओघके समान है। इसी प्रकार अकषायी, संयत और यथाख्यात संयत जीवोंमें मोहनीयविभक्ति और मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन कहना चाहिये। विशेषार्थ-मोहनीय विभक्तिवाले स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंने वर्तमानकालमें संभव सभी पदोंकी अपेक्षा और अतीतकालमें स्वस्थानस्वस्थान, तैजससमुद्धात और आहारकसमुद्धातकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदी जीवोंके तैजस और आहारकसमुद्धात नहीं होता है । तथा विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घातकी अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है और मारणान्तिक समुद्घात तथा उपपादकी अपेक्षा सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। विभंग ज्ञानियोंके स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक समुद्घात ये छह पद होते हैं। स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंके इन छह पदोंकी अपेक्षा जिस प्रकार वर्तमान और अतीत कालीन स्पर्श कहा है उसी प्रकार विभंग ज्ञानियोंके जानना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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