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________________ गा० २२ ] मूलप डिविहत्तीए कालो ३५ ५६. कायजोगी० विहत्ती केवचिरं कालादो होदि ? जह० एगसमओ । उक्क० अनंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । अविहत्ती० मणजोगिभंगो । एवमोरालिय० । वरि विहत्ती उक्कस्सेण वावीसवस्ससहस्साणि देसूणाणि । ओरालिय मिस्स० विहत्ती जह० खुद्दा० तिसमयाणं (-यूणं) उक्क सेण अंतोमुहुत्तं । अविहत्ती केव० ? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । वेउव्विय० - आहार० विहत्ती० मण० भंगो । वेउव्वियमिस्स ० विहत्ती केवचि०१ जहण्णुक० अंतोमुहुत्तं । एवमाहारमिस्स ० -उवसमसम्माइट्टि - सम्मामिच्छाइट्ठी ० कम्मइय० विहत्ती जह० एगसमओ, उक्कस्सेण तिण्णि समया । अविहत्ती केव० १ जहण्णुक० तिण्णि समया । इससे जाना जाता है कि क्षीणकषायके प्रारम्भ में पृथक्त्ववितर्कवीचार ध्यान भी सम्भव है तथा अद्धापरिमाणका निर्देश करते समय तीनों योगोंके कालसे एकत्व विर्तक अविचार ध्यानका काल बहुत अधिक बतलाया है और एकत्ववितर्क अवीचार ध्यानके कालसे क्षीणकषायका काल बहुत अधिक बतलाया है। इससे भी यही सिद्ध होता है कि क्षीणकषाय गुणस्थान में उक्त दोनों ध्यान सम्भव हैं । अतः जो सूक्ष्मसांपरायिक संयत जीव विवक्षित मनोयोग और वचनयोगके कालमें एक समय शेष रहने पर क्षीणकषायी होता है उसके विवक्षित मनोयोग और वचनयोग में मोहअविभक्तिका जघन्य काल एक समय बन जाता है । तथा सभी मनोयोगों और वचनयोगोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अतः इनकी अपेक्षा मोहविभक्ति और मोहअविभक्तिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । $ ५६. काययोगियोंके मोहनीय विभक्तिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । तथा काययोगियोंके मोहनीय अविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल मनोयोगियोंके समान है । इसी प्रकार औदारिककाययोगियोंके भी समझना चाहिये । इतनी विशेषता है कि औदारिककाययोगियों के मोहनीय विभक्तिका उत्कृष्ट काल देशोन बाईस हजार वर्ष है । औदारिक मिश्रकाययोगियोंके मोहनीय विभक्तिका जघन्य काल तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । और मोहनीय अविभक्तिका कितना काल है ? मोहनीय अविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । वैक्रियिक काययोगी और आहारकाययोगी जीवोंके मोहनीय विभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल मनोयोगियोंके समान है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंके मोहनीय विभक्तिका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार से अन्तर्मुहूर्त काल है । इसी प्रकार आहारकमिश्रकाययोगी, उपशमसम्यम्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टी जीवोंके जानना चाहिये । कार्मणकाययोगियोंके मोहनीय विभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है । और अविभक्तिका कितना काल हैं ? जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार से तीन समय काल है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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