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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहती २
रेयं पलिदोवमं सादिरेयं [पलिदोवमं सादिरेयं ] बे सागरोवमाणि [सादिरेयाणि] सत्तदस- चोइस- सोलस- अहारस- सागरोपमाणि सादिरेयाणि, वीस-बावीस तेवीस - चउवीसपंचवीस-छब्बीस सतावीम-अठ्ठावीस - एगुणतीस तीस-एक्कत्तीस वत्तीस ते तीस-सागरोवमाणि । णवरि, सव्वट्टे जहण्णुक्कस्स भेदो णत्थि |
९५३. इंदियाणुवादेण एइंदिय - बादर-सुहुम-पञ्जत्तापञ्जत्त सव्व विगलिंदिय-पंचकायबादर - सुहुम-पञ्जत्तापञत्ताणं खुदाबंधे जो आलावो सो कायव्वो ।
है । और उत्कृष्टकाल भवनत्रिकमें क्रमश: साधिक एक सागर, साधिक पल्य, साधिक पल्य, सोलह स्वर्गों में साधिक दो सागर, साधिक सात सागर, साधिक दस सागर, साधिक चौदह सागर, साधिक सोलह सागर, साधिक अठारह सागर, बीस सागर, बाईस सागर, नौ वेयकों में क्रम से तेईस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस सागर, नौ अनुदिशोंमें बत्तीस सागर, और पांच अनुत्तरों में तेतीस सागर है। इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धिमें जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिका भेद नहीं पाया जाता ।
विशेषार्थ - यहां नारकियोंके कालके समान जो देवों में मोहनीय कर्मका काल कहा है वह सामान्यकी अपेक्षासे है, क्योंकि, दोनों गतियों में जघन्य आयु दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर प्रमाण होती है। विशेषकी अपेक्षा तो देवोंके जिस भेदमें जहां जितनी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति हो वहां मोहनीय कर्म का उतना जघन्य और उत्कृष्टकाल समझना चाहिये जिसका कि ऊपर उल्लेख किया ही गया है ।
$ ५३. इन्द्रिय मार्गणा के अनुवादसे सामान्य एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सभी विकलेन्द्रिय और उनके पर्याप्त अपर्याप्त, पांचों स्थावरकाय और उनके बादर और सूक्ष्म तथा सभी बादर और सूक्ष्मोंके पर्याप्त और अपर्याप्त इनका खुद्दाबन्धमें जो काल बताया है वही इनमें मोहनीय विभक्तिका काल समझना चाहिये ।
विशेषार्थ - खुद्दाबन्धमें सामान्य एकेन्द्रियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहण प्रमाण और उत्कृष्ट काल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण बताया है। असंख्यातपुद्गलपरिवर्तनों के समयों की यदि गणना की जाय तो उसका प्रमाण अनन्त होता है । बादर एकेन्द्रियों का जघन्यकाल खुद्दाभवग्रहण प्रमाण और उत्कृष्टकाल अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण बतलाया है। यहां अंगुलके असंख्यातवें भागसे असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणियों के कालका ग्रहण किया है । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तोंका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल संख्यात हजार वर्ष बतलाया है । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंका जघन्यकाल खुद्दाभवग्रहण प्रमाण और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त बतलाया है । सूक्ष्म एकेन्द्रियों का जघन्यकाल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्टकाल असंख्यात लोकप्रमाण बतलाया है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तोंका जघन्यकाल
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