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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ पुवकोडिपुधत्तेणभहियाणि । पंचिंदियतिरिक्खअपञ्जत्त० मोहविहत्ती केवचिरं कालादो होदि १ जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं उकस्सेण अंतोमुहुत्तं । एवं मणुस-पंचिंदिय-तसअपजत्ताणं वत्तव्वं ।
५१. मणुसगदीए मणुस-मणुसपजत्त-मणुसिणीसु मोहविहत्तीए पचिंदियतिरिक्खतिगभंगो । अविहत्ती केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण पुव्व-कोडी देरणा। है। इसी अपेक्षासे उक्त तीनों प्रकारके जीवोंमें मोहनीयका उत्कष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य कहा है। यहां पृथक्त्वका अर्थ तीनसे ऊपर और नौसे नीचेकी संख्या न लेकर विपुल लेना चाहिये।
पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तोंमें मोहनीय विभक्तिका कितना काल है ? जघन्यकाल खुद्दाभवग्रहण प्रमाण और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। इसीप्रकार मनुष्य लब्ध्यपर्याप्त, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त और त्रस लब्ध्यपर्याप्त जीवोंके भी मोहनीय कर्मका जघन्य काल खुद्दाभवप्रहण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहना चाहिये ।
विशेषार्थ-उक्त गतिके जीव लब्ध्यपर्याप्त अवस्थाकी अपेक्षा कमसे कम खुद्दाभवग्रहण काल तक विवक्षितपर्यायमें रहकर अन्य गतिको चले जाते हैं। तथा अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त कालतक रहकर अन्य गतिको चले जाते हैं। क्योंकि, विवक्षित पर्याय में लगातार आगमोक्त संख्यात खुद्दाभवोंके ग्रहण करने पर भी उनके कालका जोड़ अन्तर्मुहूर्तसे अधिक नहीं होता है। इसी अपेक्षासे यहां मोहनीयका जघन्य काल खुद्दाभग्ग्रहण और उत्कष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है।
६५१. मनुष्यगतिमें सामान्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यनीके मोहनीय विभक्तिका काल क्रमशः पंचेन्द्रिय सामान्य तिथंच, पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिथंच और योनिमती पंचेन्द्रिय तिथंच इन तीनोंके अनुसार कहे गये कालके समान जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टसे पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्य समझना चाहिये । उक्त तीनों प्रकारके मनुष्यों के मोहनीय अविभक्तिका काल कितना है ? जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल देशोन पूर्वकोटि है।
विशेषार्थ-मनुष्यगतिके जीव संज्ञी ही होते हैं, इसलिये तियंचोंमें असंज्ञियोंकी अपेक्षा जो पूर्वकोटियां कही हैं वे यहां नहीं कहना चाहिये, अतः उन्हें अलग कर देनेपर सामान्य मनुष्योंमें सैतालीस पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य, पर्याप्त मनुष्योंमें तेईस पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य और मनुष्यनियों में सात पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य उत्कृष्ट काल प्राप्त होता है । तथा जघन्यकाल उक्त तीनों प्रकारके मनुष्योंका खुद्दाभवग्रहण व अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि, कोई एक जीव अन्य गतिसे आकर और उक्त तीन प्रकारके मनुष्योंले किसी एक में उत्पन्न होकर तथा उक्त
(१,-य तस्स अ-स० ।
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