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________________ ४८० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडीविहत्ती २ सव्वत्थोवा संखेज्जभागहाणि । अवढि० असंखेज्जगुणा । एवं मणुस्सअपज्ज०अणुदिसादि जाव अवराइद०-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदिय-अपज्ज०-चत्तारिकाय-तसअपज्ज०-वेउव्वियमिस्स-विहंग०-संजदासजदाणं वत्तव्वं । ५३६. मणुस्सेसु सव्वत्थोवा संखेज्जगुणहाणि । संखेजमागवड्ढी० संखेजगुणा । संखेजभागहाणि• असंखेजगुणा। अवष्टि० असंखेजगुणा। मणुमपज० मणुसिणीसु सव्वत्थोवा संखेजगुणहाणी० । संखेजभागवड्ढी० संखेजगुणा । संखेजभागहाणि० संखे० गुणा । अवष्टि० संखे० गुणा। सबढे सव्वत्थोवा संखेजभागहाणी० । अवष्टि० संखे० गुणा।। ५३७. एइंदिय-बादरेइंदिय - बादरेइंदियपजत्तापजत्त - सुहुमेइंदिय - सुहुमेइंदियपत्तापजत्तएसु सव्वत्थोवा संखेजभागहाणी० । अवट्टि० अणंतगुणा । एवं सव्ववणप्फदि०-सव्वाणिगोद०-ओरालियमिस्स-कम्मइय०-मदि-सुद-अण्णाण -मिच्छादि०असण्णि-अणाहारि त्ति । णवरि बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरेसु असंखेजगुणं कायव्यं । पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तकों में संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य, अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देव, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त, पृथिवीकायिक आदि चार स्थावरकाय, त्रस लब्ध्यपर्याप्त, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, विभंगज्ञानी और संयतासंयत जीवोंके उक्त दोनों पदोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहना चाहिये। ६५३६. मनुष्योंमें संख्यातगुणहानिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियों में संख्यातगुणहानिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । सर्वार्थसिद्धि में संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। ६ ५३७. एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रियपर्याप्त, बादर एकेन्द्रियअपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रियपर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रियअपर्याप्त जीवोंमें संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव अनन्तगुने हैं। इसीप्रकार सभी वनस्पति, सभी निगोद, औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके उक्त दो पदोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि वादरवनस्पति प्रत्येकशरीर जीवोंमें संख्यातगुणहानिवाले जीवोंसे अवस्थितपदवाले जीवोंको असंख्यातगुणा कहना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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