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________________ गाο २२ ] हत्ती खेत्तागुगमो ४६३ सामाइयछेदो ० इदि । आभिणि०सुद० - ओहि० पांचदियभंगो | णवरि वड्ढी णत्थि । एवमोहिदंस० सम्मादिद्वित्ति | अभव० अवट्टि ० के० ? अनंता । खइय० संखेज्ज - भागहाणि संखेज्जगुणहाणि० केत्ति ? संखेज्जा । अवद्वि० केत्ति ० १ असंखेज्जा | उवसम० सासण० - सम्मामि० अवधि ० के० ? असंखेज्जा | एवं परिमाणाणुगमो समत्तो । $ ५१५. खेत्ताणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण अवद्विदविहत्तिया केवडि० खेत्ते ? सव्वलोगे । सेसपदा० के० खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखे ० भागो । एवं तिरिक्ख - कायजोगि ओरालि०-णवुंस० - चत्तारि - ( कसाय) - असंजद ० अचक्खु०- भवसि० - तिण्णिले० आहारि ति वत्तव्यं । णवरि पदगयविसेसो णायव्वो । $ ५१६. आदेसेण पोरइएस सन्वपदा० के० खेत्तं फोसिदं ? लोग० असंखे ० ज्जदिभागो । एवं सव्वणिरय - पंचिंदिप तिरिक्खतिय पंचि ० तिरि ० अपज्ज० -सव्व मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंका संभव सभी पदोंकी अपेक्षा द्रव्यप्रमाण पंचेन्द्रियोंके समान है । यहां पंचेन्द्रियोंसे इतनी विशेषता है कि इनमें संख्यातभागवृद्धि नहीं पाई जाती है । इसीप्रकार अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंका संभवपदोंकी अपेक्षा द्रव्यप्रमाण कहना चाहिये । अभव्यों में अवस्थित पदवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । क्षायिक सम्यग्दृष्टियों में संख्या भागहानि और संख्यातगुणहानि पदवाले जीव प्रत्येक कितने हैं ? संख्यात हैं । तथा अवस्थित पदवाले जीव कितने हैं असंख्यात हैं । उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्रमिध्यादृष्टि जीवों में अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव प्रत्येक कितने हैं ? असंख्यात हैं । इस प्रकार परिमाणानुगम समाप्त हुआ । $ ५१५. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? सर्वलोक में रहते हैं । शेष संख्यातभागवृद्धि आदि पदवाले जीवोंने वर्तमानमें कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसीप्रकार सामान्यतिथंच, काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चारों कषायवाले, असंयत, अचक्षुदर्शनी, भव्यः कृष्णादि तीन लेश्यावाले और आहारक जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इन मार्गणास्थानों में सर्वत्र संख्यातभागवृद्धि आदि सभी पद संभव नहीं हैं इसलिये जहां जो पद हो वह जान लेना चाहिये । $ ५१६. आदेश से नारकियोंमें संख्यात भागवृद्धि आदि संभव सभी पदोंको प्राप्त हुए जीवोंने वर्तमान में कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है । लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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