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________________ terrorसहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहती २ ६५०५ णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण अवडा • णियमा अत्थि सेसपदा० भयणिजा । भंगा सत्तावीस २७ । एवं सव्वणेरइय- तिरिक्ख पंचिदियतिरिक्खतिय- मणुसतिय देव भवणादि जाव उवरिमगेवज ० - पंचिं० पंचिदियपञ्ज०- तस तसपज्ज०- पंचमण० पंचवचि०- कायजोगि० -ओरालिय० वेउब्विय०- तिण्णिवेद० - चत्तारिक ० - असंजद० चक्खु अचक्खु०- छलेस्सा०भवसिद्धि ० -सणि० - आहारि० वत्तव्वं । णवरि जत्थ संखेजगुणहाणी णत्थि तत्थ णव ४५६ $ ५०५. नानाजीवोंकी अपेक्षा भंगविचयानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है-ओनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमें से ओघकी अपेक्षा अवस्थानपदवाले जीव नियमसे हैं तथा शेष पदवाले जीव भजनीय हैं । अतः इनके सत्ताईस भंग होते हैं । विशेषार्थ - संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागद्दानि और संख्यातगुणहानि इनके एक जीव और नानाजीवों की अपेक्षा एक संयोगी द्विसंयोगी और तीन संयोगी कुल भंग छब्बीस होते हैं और इनमें अवस्थान पदकी अपेक्षा एक ध्रुव भंगके मिला देने पर कुल भंगों का जोड़ सत्ताईस होता है। जितने भजनीय पद हों उतनी बार तीनको रखकर परस्पर गुणा करनेसे ये कुल भंग आ जाते हैं । यहाँ भजनीय पद तीन हैं अतः तीन बार तीनको रखकर परस्पर गुणा करनेसे सत्ताईस उत्पन्न होते हैं यही कुल भंगों का प्रमाण है । पहले जो अठ्ठाईस आदि विभक्तिस्थानोंकी अपेक्षा भंग और उनके उच्चारण करने की विधि लिख आये हैं उसीप्रकार यहाँ भी समझ लेना चाहिये । इसीप्रकार सभी नारकी, सामान्य तिथंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय पर्याप्त तियंच, पंचेन्द्रिय योनिमती तिथंच, सामान्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य, स्त्रीवेदी मनुष्य, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर उपरिम ग्रैवेयक तकके देव, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस, स पर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाथयोगी, वैक्रियिककाययोगी, तीनों वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, छहों लेइयावाले, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इन उपर्युक्त मार्गणास्थानोंमेंसे जहां पर संख्यातगुणहानि नहीं पाई जाती है वहां पर कुल नौ ही भंग होते हैं । विशेषार्थ - किस मार्गणास्थान में संख्यात भागवृद्धि आदि मेंसे कितने पद पाये जाते हैं। यह स्वामित्वानुयोगद्वार में बता आये हैं। ऊपर जो मार्गणास्थान गिनाये हैं उनमें कुछ ऐसे स्थान हैं जिनमें संख्यातगुणहानिके बिना शेष तीन और कुछ में चारों पद पाये जाते हैं। जहां चारों पद पाये जाते हैं वहां २७ भंग होंगे, इसका खुलासा ऊपर ही कर आये हैं । पर जहां संख्यात गुणहानिके बिना शेष तीन पद पाये जाते हैं वहां दो भजनीय पदके एक जीव और नाना जीवोंकी अपेक्षा प्रत्येक और द्विसंयोगी आठ भंग होंगे और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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