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________________ " ४३२ सेकाले उक्कस्समवाणं । terror सहिदे कसायपाहुडे एवमुकस्यं सामित्तं समत्तं । ६४८०. जहणए पदं । दुविहो णिसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण जहणिया वड्ढी कस्स ? अण्णदरो जो सत्तावीस संतकम्मिओ तेण सम्मत्ते महिदे तस्स जहणिया वड्ढी । जहणिया हाणी कस्स ? अण्णदरो जो अट्ठावीसंतकाम्मओ तेण सम्मत्ते उब्वेल्लिदे तस्स जह० हाणी । एगदरत्थ अवद्वाणं । एवं सत्त पुढवि-तिरिक्खपंचिदियतिरिक्ख पंचि ० तिरि० पज०-‍ - पंचिं ० तिरि० जोणिणी- मणुस तिय-देव-भवणादि जाव उवरिमगेवज्ज० - पंचिंदिय पंचि ० पञ्ज० तस-तसपञ्ज० - पंचमण ० पंचवचि०- कायजोगि० -ओरालि० - वेउब्विय० - तिण्णिवेद० चत्तारिक० असंजद ० - चक्खु ० - अचक्खु ० छलेस्सा०-भवसिद्धि०-सण्णि आहारीणं वत्तव्वं । पंचिं० तिरि० अपात्तए जहणिया हाणी कस ? अण्णदरो जो अट्ठावीस संतकम्मिओ तेण सम्मत्ते उन्बलिदे तस्स जह० हाणी । तस्सेव से काले जहण्णमवद्वाणं । एवं मणुस-अपज० सव्व एइंदिय- सव्वविगलिंदिय- पांचदिय अपज ० -पंचकाय ० तसअप ०-मदि-सुद- अण्णाण विहंग० -मिच्छादि० Jain Education International [ पयडीविहत्ती २ इसप्रकार उत्कृष्ट स्वामित्वानुयोगद्वार समाप्त हुआ । ९४८ ०. अब जघन्य स्वामित्वका प्रकरण है । उसका निर्देश दो प्रकारका है - ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश | उनमेंसे ओघकी अपेक्षा प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? सत्ताईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक मिध्यादृष्टि जीव जब सम्यक्त्वको प्राप्त होता है तब उसके जघन्य वृद्धि होती है । जघन्य हानि किसके होती है ? अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव जब सम्यक्प्रकृतिकी उद्वेलना कर देता है तब उसके जघन्य हानि होती है । तथा इनमें से किसी एकके जघन्य अवस्थान होता । इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, तिथंच, पंचेन्द्रियतिर्यंच, पंचेन्द्रियतिर्यंच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिर्थचयोनिमती, सामान्य, पर्याप्त और स्त्रीवेदी ये तीन प्रकारके मनुष्य, सामान्यदेव, भवनवासियोंसे लेकर उपरिम ग्रैवेयक तकके देव, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस, त्रस पर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, तीनों वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, छहों लेश्यावाले, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके जघन्य हानि, जघन्य वृद्धि और जघन्य अवस्थान कहना चाहिये । पंचेन्द्रिय तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तक जीवों में जघन्य हानि किसके होती है ? जो अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला पंचेन्द्रिय तिर्यच लब्ध्यपर्याप्त जींव जब सम्यक्प्रकृतिको उद्वेलना करता है, तब उसके जघन्य हानि होती है। तथा उसी जीवके तदनन्तर कालमें जघन्य अवस्थान होता है । इसी प्रकार मनुष्य लब्ध्यपर्याप्त, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त, पांचों स्थावरकाय, त्रस लब्ध्यपर्याप्त, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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