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गा० २२]
पदणिक्खेवे समुक्त्तिणा * पदणिक्खेवे वढीए च अणुमग्गिदाए सम्मत्ता पयडिविहत्ती।
६४७३. पदणिक्खेवो णाम अहियारो अवरो बढी णाम । एदेसु दोसु अहियारेसु एत्थ परूविदेसु पयडिविहत्ती समप्पदि त्ति जइवसहाइरिएण भणिदं ।
६४७४. संपहि जइवसहाइरिय-मूहदाणं दोण्हमत्थाहियाराणमुच्चारणाइरियपरूविदमुच्चारणं वत्तइस्सामो
४७५. पदणिक्खेवे तिण्णि अणियोगद्दाराणि समुकित्तणा, सामित्तमप्पाबहुअं चेदि । को पदणिक्खेवो णाम ? जहण्णुकस्सपदविसयणिच्छए खिवदि पादेदि त्ति पदणिक्खेवो । तत्थ समुक्तित्तणाणुगमो दुविहो उक्कस्सओ जहण्णओ चेदि । तत्थ उक्कस्सए पयदं।
* यहां पर पदनिक्षेप और वृद्धि इन दो अनुयोगद्वारोंका विचार कर लेनेपर प्रकृतिविभक्तिका कथन समाप्त होता है।
४७३. एक अधिकारका नाम पदनिक्षेप है और दूसरेका नाम वृद्धि । इन दोनों अधिकारोंका यहां कथन कर देनेपर प्रकृतिविभक्तिका कथन समाप्त होता है, यह यतिवृषभाचार्यका अभिप्राय है।
६४७४. अब यतिवृषभाचार्य के द्वारा सूचित किये गये दोनों अर्थाधिकारोंकी उच्चारणाचार्यके द्वारा कही गई उच्चारणावृत्तिको बतलाते हैं
$ ४७५. पदनिक्षेपमें तीन अनुयोगद्वार हैं-समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व । शंका-पदनिक्षेप किसे कहते हैं ?
समाधान-जो जघन्य और उत्कृष्ट पदविषयक निश्चयमें ले जाता है उसे पदनिक्षेप कहते हैं।
पदनिक्षेपके उन तीनों अनुयोगद्वारों मेंसे समुत्कीर्तनानुयोगद्वार उत्कृष्ट और जघन्यके भेदसे दो प्रकारका है। उन दोनोंमेंसे उत्कृष्ट समुत्कीर्तना प्रकृत है अर्थात् पहले उत्कृष्ट समुत्कीर्तनाका कथन करते हैं
विशेषार्थ-पहले २८, २९ आदि विभक्तिस्थान बतला आये हैं। उनमेंसे अमुक स्थान से अमुक स्थानकी प्राप्ति होते समय वह हानिरूप है या वृद्धिरूप इत्यादि बातोंका इसमें विचार किया गया है। यथा-एक जीव अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाला है उसने सम्यक्त्वकी उद्वेलना करके सत्ताईस विभक्तिस्थानको प्राप्त किया तो यह जघन्य हानि हुई । तथा एक जीव इकोस विभक्तिस्थानवाला है उसने क्षपकश्रेणीपर चढ़कर आठ कषायोंका क्षय करके तेरह विभक्तिस्थानको प्राप्त किया तो यह उत्कृष्ट हानि है । इसी प्रकार सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जिस जीवने उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त करके अट्ठाईस विभक्तिस्थानको प्राप्त किया तो यह जघन्य वृद्धि है तथा चौबीस विभक्तिस्थानवाले एक जीवने मिथ्यात्वमें जाकर अट्ठाईस
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