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________________ ४१६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ एयसमओ, उक्क० आवलि० असंखे० भागो। अवहि० सव्वद्धा । मणुसपञ्जा-मणुसिणीसु भुज. अप्प० जह० एगसमओ, उक० संखेजा समया। अवहि० सव्वद्धा । मणुसअपज० अप्पद० जह० एयसमओ, उक० आवलि० असंखे० भागो। अवाहिक जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । एवं बेउब्धियमिस्स० । सव्वहे अप्पद० जह० एगसमओ, उक० संग्वेजा समया । अवष्टि० सम्बद्धा। एवं मणपज-संजदसामाइय-छेदो०-परिहार० खइयसम्माइहि त्ति वत्तव्वं । आहार अवहि जह० एयसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । एवमकसा०-सुहुम :-जहाक्खाद० वत्तव्वं । आहारमिस्स. अवष्टि० जहण्णुक्क० अंतोमुहुत्तं । ६४६२. उवसम० सम्मामि० अवष्टि० जह० अंतोमुहुत्तं उक्क० पार्लिदो० असंखे० एय समय और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। तथा अवस्थित विभक्तिस्थानवाले मनुष्य सर्वदा पाये जाते हैं इसलिये उनका सर्व काल है। पर्याप्त मनुष्य और स्त्रीवेदी मनुष्योंमें भुजगार और अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। तथा अवस्थित विभक्तिस्थानवाले पर्याप्त और स्त्रीवेदी मनुष्य सर्वदा पाये जाते हैं इसलिये इनका सर्व काल है। लब्ध्यपर्याप्त मनुष्यों में अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है । तथा अवस्थित विभक्तिस्थानवाले लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसीप्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल जानना चाहिये। सर्वार्थसिद्धिमें अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। तथा अवस्थित विभक्तिस्थानवाले सर्वार्थसिद्धिके देघ सर्वदा पाये जाते हैं इसलिये उनका सर्वकाल है। इसीप्रकार मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों में अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कहना चाहिये । आहारक काययोगी जीवोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार अकषायी, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यात संयतोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कहना चाहिये। आहारकमिश्रकाययोगियोंमें अवस्थितविभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। ६४६२. उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवों में अवस्थितविभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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