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________________ गा०२२] भुजगारविहत्तीए भागाभागाणुगमो ४०७ ६४५१. आदेसेण णेरईएसु अवट्टिद० के० भागो ? असंखेजा भागा। भुज. अप्पद० के० भागो ? असंखे० भागो । एवं सत्तसु पुढवीसु पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिं० तिरि० पञ्ज-पंचिंतिरि०जोणिणी-मणुस-देव-भवणादि जाव उवरिमगेवज०-पंचिंदियपंचि० पज० -तस-तसपज-पंचमण-पंचवचि०-वेउब्विय०- इथि०- पुरिस०-चक्खु.. तिण्णिले०-सण्णि त्ति वत्तव्वं । पंचिं०तिरि०अपज० अवष्टि० सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? असंखेजा भागा। अप्पदर. असंखे०भागो। एवं मणुसअपज०-अणुद्दिसादि जाब अवराइद०-सव्वविगालंदिय-पंचिं० अपज० -चत्तारिकाय-तसअपज०-वेउव्वियभिस्स-विहंग०-आभिणि-सुद०-ओहि०-संजदासंजद-ओहिदसण-सम्मादि०. खड्य०-वेदय०-उवसम० वत्तव्वं । ६४५२. मणुस्सपज०-मणुसिणी० अवष्टि० संखेज्जा भागा। भुज. अप्पदर० केव० ? संखे० भागो । सव्वट्ठ० अवष्टि० सव्वजी० के०१ संखेज्जा भागा। अप्प० ६१५१. आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नारकियोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव सर्व नारकियोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। भुजगार और अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीव कितनेवें भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। इसीप्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी तथा पंचेन्द्रिय तिथंच, पंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिर्यच योनीमती, सामान्य मनुष्य और सामान्य देवोंमें तथा भवनवासियोंसे लेकर उपरिम प्रैवेयक तकके देवोंमें तथा पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त, प्रस, त्रसपर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों बचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, चक्षुदर्शनी, कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले और संज्ञी जीवोंमें कहना चाहिये । पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव सर्व पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । तथा अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। इसीप्रकार मनुष्य लब्ध्यपर्याप्तकोंमें, अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देवोंमें तथा सभी प्रकारके विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त, पृथिवी आदि चार स्थावरकाय, त्रस लब्ध्यपर्याप्त, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, विभङ्गज्ञानी, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयतासंयत, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशम सम्यग्दृष्टि जीवोंमें अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानोंकी अपेक्षा भागाभाग कहना चाहिये । ६४५२. मनुष्यपर्याप्त और स्त्रीवेदी मनुष्योंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यात बहुभागप्रमाण है। तथा भुजगार और अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीव कितनेवें भागप्रमाण हैं ? संख्यातवें भागप्रमाण हैं। सर्वार्थसिद्धिमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव सर्वार्थसिद्धिके सभी देवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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