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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ बादरेइंदिय-बादरेइंदियपजतापजत्त- सुहुमेइंदिय-सुहुमेइंदियपजत्तापजत्त-सव्ववणफदिकाइय-ओरालियमिस्स-कम्मइय०-मदि-सुद-अण्णाण-मिच्छादिहि-असणि आणाहारि त्ति वत्तव्वं । आहार आहारमिस्स० अवढि० के० ? संखेजा। एवमकसाय०-सुहुम० जहाक्खाद० वत्तव्यं । अभन्ब० अवहि० के० १ अणंता । खइय। अप्पदर० के० ? संखेजा। अवष्टि० के० ? असंखेजा। सासण-सम्माभि० अवहि० के० ' असंखेजा। एवं परिमाणाणुगमो समत्तो । ६४५०. भागाभागाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण अवष्टिदविहत्तिया सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? अणंता भागा। मुजगार-अप्पदरविहत्तिया सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? अणंतिमभागो। एवं तिरिक्ख-कायजोगिओरालि०- णस० - चत्तारिक० -असंजद -अचक्खु ० -तिण्णिले ० -भवसि० - आहारि० वत्तव्वं । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सभी प्रकारके वनस्पतिकायिक, औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, और अनाहारक जीवोंमें अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंकी संख्या कहना चाहिये। ___ आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसीप्रकार अकषायी, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यात संयत जीवोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यात कहना चाहिये। अमव्योंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंमें अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। तथा अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यगमिथ्यादृष्ठि जीवोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसप्रकार परिमाणानुगम द्वार समाप्त हुआ। ६१५०. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है ? ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओपनिर्देशकी अपेक्षा अवस्थित विभक्तिवाले जीव सर्व जीवोंके कितनेवें भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं। भुजगार और अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीव सर्व जीवोंके कितनेवें भाग हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं। इसीप्रकार सामान्य तियंच, काययोगी, औदारिक काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चारों कषायवाले, असंयत, अचक्षुदर्शनी, कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले, भव्य और आहारक जीवों में अवस्थित आदि विभक्तिस्थानबाले जीवोंका भागाभाग कहना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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