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________________ गा० २२ ] vastufeत्ती फोसणा मुगमो पंचि० तिरिक्खभंगो, विसेसा (सेसवि०) खेचभंमो । ९३६५. देवेसु अट्ठावीस सत्तावीस-छब्बीसवि० के० खेतं फोसिदं ? लोग० असंखे ० भागो, अढ णव - चोहसभागा वा देसूणा । चउवीस - एकवीस० के० खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखे० भागो, अट्ठ- चोहसभागा वा देखणा । बावीस ० के० खेतं फोसिदं ? लोग० असंखे ० भागो । एवं सोहम्मीसाणदेवाणं । भवण० वाण० जोदिसि० अट्ठावीस - सत्तावीस-छब्वीस० के० खेत्तं फोसिदं । लोग० असंखे० भागो, अगुड-अट्ठ-कचोभागा वा देखणा | चउवीस० के० खेतं फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो, अजुङ- अट्ठचोहस० देखणा | सणक्कुमारादि जाव सहस्सारे ति बावीस ० खेत्तभंगो । सेसपदाणं छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका स्पर्श पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है । संभव शेष पदोंका स्पर्श क्षेत्र के समान है । विशेषार्थ - २८, २७ और २६ विभक्तिस्थानवाले उक्त तीन प्रकारके मनुष्य सर्वत्र उत्पन्न होते हैं तथा उक्त विभक्तिस्थानवाले चारों गतियों के जीव आकर इनमें उत्पन्न होते हैं अतः इनका वर्तमान और अतीतकालीन स्पर्श पंचेन्द्रिय तिर्थचोंके समान बन जाता है । अब रही शेष विभक्तिस्थानोंकी अपेक्षा स्पर्शकी बात । सो उनमें से २४, २२ और २१ विभक्तिस्थानवाले मनुष्य ही अन्य गतिमें जाकर उत्पन्न होते हैं या देव और नरक गतिके २४ और २१ विभक्तिस्थानवाले जीव आकर मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। पर ये सम्यम्हष्टि होते हुए अतिस्वल्प होते हैं अतः इनका वर्तमान और अतीतकालीन स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है । इनसे अतिरिक्त शेष विभक्ति स्थानवाले मनुष्यों का स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होगा यह बात स्पष्ट है । ९३६५. देवों में अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और कुछ कम नौ बटे चौदह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले देवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग तथा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। बाईस विभक्तिस्थानवाले देवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्क्ष किया है । इसीप्रकार सौधर्म और ऐशान स्वर्गके देवोंके स्पर्शका कथन करना चाहिये । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों में अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग तथा कुछ कम साढ़े तीन बटे चौदह भाग, कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और कुछ कम नौ बटे चौदह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके भाग तथा कुछ कम साढ़े तीन बड़े चौदह भाग और कुछ कम आठ बड़े ४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only ३२६ असंख्यात बें चौदह माम www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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