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________________ ३१८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ ३३५३. सव्वहे अट्ठावीस० सव्वजीवाणं के ? संखेजा भागा। सेसपदा संखेज्जदि भागो । एवमाहार ०-आहारमिस्स ०-मणपज्ज -संजद ०-सामाइय-छेदो०-परिहार० वत्तव्वं । अवगदवेदः चउण्हं वि०सव्वजीवाणं के० १ संखेज्जा भागा । सेसप० संखे० भागो। अकसाय० चउवीस० सव्वजीवाणं के०१ संखेज्जा भागा। सेसप० संखे० भागो। एवं जहाक्खाद० । आभिणि-सुद-ओहि. अहावीसविह० सव्वजीवाणं के० ? असंखेज्जा भागा। सेसपदा असंखे० भागो । एवं संजदासंजद० ओहिदसण-सम्मादि०वेदग०-उवसम०-सम्मामिच्छाइहि त्ति वत्तव्वं । सुहुमसांपराय० एकविह० सव्वजीवाणं के• ? संखेज्जा भागा। सेसप० संखे० भागो। सुक्क. अहावीस० के० १ संज्जा भागा । छव्वीस-चउवीस-एकवीस० संखे० भागो । सेसप० असंख० भागो । अभव्वसिद्धि०-सासण० णत्थि भागाभागो। खइए एकवीसविह० सव्वजीवाणं के० ? ६३५३. सर्वार्थसिद्धिमें अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव सब उक्त जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहु भाग हैं। शेष विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातवें भाग हैं। इसीप्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत और परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके कहना चाहिये । अपगतवेदवालोंमें चार विभक्तिस्थानवाले जीव सब अपगतवेदी जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। शेष विभक्तिस्थानवाले संख्यातवें भाग हैं। कषायरहित जीवोंमें चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव सब कषायरहित जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। शेष विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातवें भाग हैं । इसीप्रकार यथाख्यातसंयतोंके जानना चाहिये। __मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव उक्त सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। शेष विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातवें भाग हैं। इसीप्रकार संयतासंयत, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके कहना चाहिये । सूक्ष्मसांपरायिक संयतोंमें एक विभक्तिस्थानवाले जीव सब सूक्ष्मसांपरायिक जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। तथा शेष विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातवें भाग हैं। शुक्ललेश्यावालोंमें अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। छब्बीस, चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातवें भाग हैं। तथा शेष विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातवें भाग हैं। अभव्य और सासादनसम्यग्दष्टियोंमें विभक्तिस्थानसम्बन्धी भागाभाग नही पाया जाता है। क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंमें इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव सब क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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