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________________ गा०२२] पयडिट्ठाणविहत्तीए भागाभागाणुगमो ३१७ ६३५२. आदेसेण णिरयगईए रईएसु छन्वीसविहत्तिया सव्वजीवाणं केव० ? असंखेजाभागा । सेसपदा सव्वजीव० केव० ? असंखे० भागो। एवं सव्वणेरइय-सव्धपंचिंदिय तिरिक्ख-मणुस्स-मणुस्स अपज०-देव०-भवणादि जाव सहस्सारे त्ति-सव्वविगलिंदिय पंचिंदिय-पंचिं० पञ्ज०-पंचिं० अपज०-चत्तारिकाय०-तस-तसपज०-तसअपज्ज.० -पंचमण-पंचवचि० -वेउव्विय ०-वेउ • मिस्स०-इत्थि ० -पुरिस -विहंगचक्खु०-तेउ०-पम्म०-सण्णि त्ति वत्तव्यं । मणुस्सपज०-मणुस्सिणीसु छव्वीसविह० सव्वजीवाणं के० भागो ? संखेजा भागा। सेसपदा संखे० भागो । आणदादि जाव उवरिमगेवजेत्ति अठ्ठावीसविह. सव्वजीवाणं के० भागो ? संखेजा भागा । छव्वीसचउवीस-एक्कवीसविह० संखेजदि भागो। वावीस-सत्तावीसविह० असंखेजदि भागो । अणुदिसादि जाव अवराइद त्ति अहावीसविह० सव्वजीवाणं के० भागो? संखेजा भागा । सेसपदा संखेजदि भागो । वावीसवि० असंखे० भागो । ओघप्ररूपणाके समान जानना चाहिये । तात्पर्य यह है इन उक्त मार्गणाओंमें छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव अनन्त बहुभाग प्रमाण हैं और शेष विभक्तिस्थानवाले जीव अनन्तवें भाग प्रमाण हैं । अतः इनके कथनको ओघके समान कहा है। ६३५२. आदेशकी अपेक्षा नरक गतिमें नारकियोंमें छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव सर्व . जीवोंके कितनेवें भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। शेष विभक्तिस्थानवाले जीव सभी जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। इसीप्रकार सभी नारकी, सभी पंचेन्द्रियतिथंच, सामान्य मनुष्य, लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य, सामान्य देव तथा भवनवासी देवोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देव, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, त्रस, त्रसपर्याप्त, त्रस लब्ध्यपर्याप्त, पांचों प्रकारके मनोयोगी, पांचों प्रकारके वचनयोगी, वैक्रियिक काययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, चक्षुदर्शनी, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और संज्ञी जीवोंके कहना चाहिये। पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यनियोंमें छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव सब उक्त जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। तथा शेष स्थानवाले संख्यातवें भाग हैं ? आनत कल्पसे लेकर उपरिम प्रैवेथिक तक अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव सब उक्त जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। छब्बीस, चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातवें भाग हैं। तथा बाईस और सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातवें भाग हैं। अनुदिशसे लेकर अपराजित तक प्रत्येक स्थानके अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव सब उक्त जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। शेष विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातवें भाग हैं। तथा बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातवें भाग हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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