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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ३.१२ [पयडिविहत्ती २ ओरालि० - इत्थि० - पुरिस० - वुम० चत्तारिक० - असंजद ० चक्खु ० - अचक्खु ० तेउ०- पम्म - ० सुक० भवसिद्धि०-सण्णि ० - आहारिति मूलोघभंगो | णवरि इत्थि० - पुरिस० णवुंस ०संजदासंजद - असंजद - तेउ०- पम्म० चत्तारि कसायाण भयणिञ्जपदपमाणं णादूण भंगा उप्पादेदव्वा । $३४७. आदेसेण णिरयगईए पेरईएस अट्ठावीस -सत्तावीस-छब्बीस-चउवीस-एककापयोगी औदारिक काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चारों कषायवाले, अंसयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, तेजोलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, शुक्ललेश्यावाले, भव्य, संज्ञी और आहारी जीवोंके मूलोधके समान भंग जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी,नपुंसकवेदी, संयतासंयत, असंयत, तेजोलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और क्रोधादि चारों कषायवाले जीवोंके भजनीय पदों का प्रमाण जानकर उनके भंग उत्पन्न करना चाहिये । विशेषार्थ-पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त, त्रस, त्रसपर्याप्त, पांचो मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, शुक्ल लेश्यावाले, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके ध्रुव अट्ठाईस आदि और भजनीय तेईस आदि सभी पद पाये जाते हैं, इसलिए इनके ऊपर कहे गये ५६०४६ ये सभी भंग सम्भव हैं । स्त्रीवेदी और नपुंसकवेदी जीवके ध्रुवपद तो सभी पाये जाते हैं पर भजनीय पदोंमें तेईस, बाईस, तेरह और बारह ये चार विभक्तिस्थान ही पाये जाते हैं, अतः इन दोनों वेदवालोंके भजनीय पदसम्बन्धी ८० भंग और १ ध्रुवभंग इसप्रकार कुल ८१ भंग सम्भव हैं । पुरुषवेदियोंके ध्रुवपद सभी पाये जाते है और भजनीय पदोंमें तेईस, बाईस, तेरह, बारह, ग्यारह, और पांच ये छह विभक्तिस्थान पाये जाते हैं । अतः पुरुषवेदी जीवोंके भजनीय पदसम्बन्धी ७२८ भंग और १ ध्रुवभंग इसप्रकार कुल ७२६ मंग सम्भव हैं । असंयत, तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीवोंके ध्रुवपद सभी पाये जाते हैं और भजनीयपदों में तेईस और बाईस ये दो पद ही पाये जाते हैं, अतः इनके भजनीय पदसम्बन्धी भंग और १ ध्रुवभंग इसप्रकार र भंग सम्भव हैं । क्रोधादि चारों कषायवाले जीवोंके ध्रुवपद सभी पाये जाते हैं और अध्रुव पद क्रोधकषायवालोंके तेईस, बाईस, तेरह, बारह, ग्यारह, पांच और चार ये सात पद, मानकषायवाले जीवोंके इन सात पदोंमें तीन विभक्तिस्थानके मिला देनेसे आठ पद, मायाकषायवाले जीवोंके इन आठ पदोंमें दो विभक्तिस्थानके मिला देनेपर नौ पद और लोभकषायवालोंके इन नौ पदोंमें एक विभक्तिस्थानके मिला देनेपर दस पद पाये जाते हैं, अतः इन क्रोधादि कषायवाले जीवोंके क्रमशः २१८७, ६५६१, १९६८३ और ५६०६६ भंग सम्भव हैं । ९३४७. आदेशकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकियोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस, और इक्कीस विभक्तिवाले जीव नियमसे हैं । बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव Jain Education International ८८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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