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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे (पडिविहत्ती २ ९३२६. एदिस्से गाहाए अत्थो वुच्चदे । तं जहा, भयणिपाणि दस । पुणो एदाणि विरलिय तिगं काढूण अण्णोष्णेण गुणिदे सव्वभंगा उप्पयंति । तेर्सि पमाणमेदं - ५६०४६ । पुणो एत्थ एगरूवे अवणिदे भयाणजपदभंगा होंति । तम्हि चैव अवणिदरूवे पक्खित्ते धुवभंगेण सह सव्वभंगा उपति । ३३०. संपहि तिगुणिय अण्णोष्णगुणस्स कारणे भण्णमाणे ताव एसा संदिट्ठी ११११११११११ २२२२२२२२२२ वेदवा | । एत्थ उवरिमअंका एयवयणस्स हेट्टिम - अंका वि बहुवयणस्स । एवं हविय तदो एदोसिमालावपरूवणा कीरदे । तं जहा - सिया एदे भङ्ग एक कम होते हैं और ध्रुवभङ्ग सहित अध्रुवभङ्ग उक्त संख्याप्रमाण ही होते हैं । " ९३२१.अब इस गाथाका अर्थ कहते हैं । वह इसप्रकार है - प्रकृतमें २३, २२, १३, १२, ११, ५, ४, ३, २ और इसप्रकार ये दस विभक्तिस्थान भजनीय हैं । इन १० पदोंका १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ इसप्रकार विरलन करके इन्हें ३ ३ ३ ३ , ३ ३ ३ ३ ३ इसप्रकार तिगुना करे और परस्परमें ३४३४३४३४३४३×३×३ ३४३ गुणा कर दे । ऐसा करनेसे सभी ध्रुव और अध्रुव भङ्ग उत्पन्न हो जाते हैं। उन सबका प्रमाण ५६०४६ होता है । इस उपर्युक्त राशिमेंसे १ कम कर लेनेपर भजनीय पदोंका प्रमाण ५६०४८ होता है । तथा इस संख्यामें, जो एक घटाया था उसे मिला देने पर ध्रुवभङ्गके साथ सभी भङ्गोंका प्रमाण ५६०४६ आता है । उदाहरण - भजनीयपद १०, भजनीय पदका विरलनविरलितराशिका त्रिगुणीकरण और परस्पर गुणा ५६०४६-१=५६०४८ अध्रुवभंग । ५६०४८+१=५६०४९ ध्रुव और अध्रुव सभी भंग । ९३३०. विरलित राशिके प्रत्येक एकको तिगुना करनेके और उसके परस्पर गुणा करनेके कारणको बतलानेके लिये निम्न लिखित संदृष्टि स्थापित करनी चाहिये १ १ १ १ १ १ १ १ १ २ २ २ २ २ २ २ एकका अंक एकवचनका और नीचे रखा हुआ दो इसप्रकार संदृष्टिको स्थापित करके अब उन अंगों के २६४ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ Jain Education International }-३×३×३×३×३= १ २ २ २ इस संदृष्टिमें ऊपर रखा हुआ का अंक बहुवचनका द्योतक है । आलापका कथन करते हैं। वह इसप्रकार है कदाचित् २८, २७, २६, २४ और २१ ध्रुवस्थानवाले ही जीव होते हैं । ×३×३×३×३=५१०४१ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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