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________________ गा० २२) पयडिहाणविहत्तीए कालो २५६ $२९७.तिरिक्खगईए तिरिक्खेसु अट्ठावीसविह० केव० १ जह० एगसमओ । उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण सादिरेपाणि। सत्तावीस ओघभंगो। छव्वीसविह० केव० ? जह० एगसमओ, उक्क. अणंतकालमसंखेजा पुग्गलपरियट्टा । चउवीसविह० केव० जह० अंतोमु०, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है। पहले नरकमें २२ विभक्तिस्थानका जघन्य और उत्कृष्ट काल इसीप्रकार जानना चाहिये; क्योंकि अन्य नरकोंमें २२ विभक्तिस्थान नहीं होता है। नरकमें इक्कीस विभक्तिस्थानका जघन्य काल जो अन्तर्मुहुर्त कम चौरासी हजार वर्ष प्रमाण बतलाया है उसका यह कारण प्रतीत होता है कि यदि कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि जीव कृतकृत्य वेदकके काल में अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर नरकसम्बन्धी सम्यग्दृष्टिकी जघन्य आयुके साथ मरकर नरकमें उत्पन्न हो तो २१ विभक्तिस्थानका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कम चौरासी हजार वर्ष प्रमाण प्राप्त होता है। तात्पर्य यह है कि नरकमें उत्पन्न हुए सम्यग्दृष्टि जीवकी जघन्य आयु चौरासी हजार वर्षसे कम नहीं होती है किन्तु ऐसे जीवके २२ और २१ इन दोनों विभक्ति स्थानोंका पाया जाना भी सम्भव है। अत: यहां २१ विभक्तिस्थानका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कम चौरासी हजार बर्ष कहा है। इससे यह भी निष्कर्ष निकल आता है कि जिसके २२ विभक्तिस्थानके कालमें एक समय शेष रहा है ऐसा जीव यदि सम्यग्दृष्टिकी जघन्य आयुके साथ मरकर नरकमें उत्पन्न हो तो उसके २१ विभक्तिस्थानका काल एक समय कम चौरासी हजार वर्ष होता है। इसीप्रकार उत्तरोत्तर बाईस विभक्तिस्थानके कालमें एक एक समय तक बढ़ाते हुए अन्तर्मुहूर्त काल तक ले जाना चाहिये और इक्कीस विभक्तिस्थानके कालमें एक एक समय घटाते हुए अन्तर्मुहूर्त कम चौरासी हजार वर्ष तक ले जाना चाहिये । उक्त कथनसे यह भी सिद्ध होता है कि कोई २१. विभक्तिस्थानवाला जीव वहां की क्षायिक सम्यग्दृष्टिकी आयुके साथ मरकर यदि नरकमें उत्पन्न हो तो उसके चौरासी हजार वर्षसे कम आयु नहीं पाई जायगी। तथा नरकमें २१ विभक्तिस्थानका उत्कृष्ट काल पल्यका असंख्यातवां भाग कम एक सागर प्रमाण है। इसका यह तात्पर्य है कि यद्यपि पहले नरककी उत्कृष्ट आयु परिपूर्ण एक सागर प्रमाण है फिर भी वहां उत्पन्न हुए क्षायिक सम्यग्दृष्टिके पहले नरककी उत्कृष्ट आयु नहीं प्राप्त होती है किन्तु, पल्यके असंख्यातवें भाग कम एक सागर ही प्राप्त होती है। २६७. तियंचगतिमें तिथंचोंमें अट्ठाईस विभक्तिस्थानका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यका असंख्यातवां भाग अधिक तीन पल्य है। सत्ताईस विभक्तिस्थानका काल ओघके समान जानना चाहिये । छब्बीस विभक्तिस्थानका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल है। वह अनन्तकाल असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। चौबीस प्रकृतिक स्थानका काल कितना है ? जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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