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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहती २ ० १२६४. परिहार • अट्ठावीस - चउवीस तेवीस-बावीस एकवीसविह० कस्स १ अण्ण० संजदस्स | सुहुमसांपराइय० चउवीस-एक्कवीसविह० कस्स अण्ण• उवसामयस्स । एक्कविह० कस्स ? अण्ण० खवयस्स । संजदासंजद • अट्ठावीस चउवीसबिह० कस्स ? अण्ण• दुगई वट्टमाणस्स । तेवीस-बावीस एकवीसविह० कस्स ? अण्ण० मणुस्सस्स मणुस्सिणीए वा । असंजद० अट्ठावीसादि जान एकवीसं ति ओघभंगो । O $ २६ ५ . लेस्साणुवादेण किण्हलेस्साए अट्ठावीस विह० कस्स ? अण्णद ० चउंग मिच्छाइस्म, देवगई विणा तिगइसम्माइहिस्स । छव्वीस सत्तावीसविह० कस्स ? अण्ण० चउगमिच्छाइटिस्स | चउवीसविह० कस्स ? अण्ण० तिगइसम्माइार्डस्स । एकवीसविह० कस्स ? अण्ण० मणुस्स - मणुस्सिणीखइय सम्माइट्ठिस्स । एवं गील- काउलेस्साणं । raft काउलेस्साए बावीसविह० कस्स ? अण्ण० तिगइसम्माइहिस्स अक्खीणदंसणसमझना चाहिये । २३० १२६४. परिहार विशुद्धिसंयतों में अट्ठाईस, चौबीस, तेईस, बाईस और इक्कीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? किसी भी संयतके होते हैं । सूक्ष्मसांपरायिकशुद्धि संयतोंमें चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? किसी भी उपशामक के होते हैं । एक विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी क्षपकके होता है । संयतासंयतोंमें अट्ठाईस और चौबीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? तिर्यच और मनुष्यगतिमें विद्यमान किसी भी जीवके होते हैं । तेईस, बाईस और इक्कीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? किसी भी मनुष्य या मनुष्यनीके होते हैं । अंसयतोंके अट्ठाईस विमक्तिस्थान से लेकर इक्कीस विभक्तिस्थान तक ओषके समान समझना चाहिये । विशेषार्थ - कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि या क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव मरकर यदि तिथेच होता है तो उत्तम भोगभूमिज ही होता है पर वहां संयमासंयमकी प्राप्ति सम्भव नहीं, इसलिये संयतासंयत गुणस्थानमें २२ और २१ ये दो सत्त्वस्थान केवल मनुष्य गतिमें ही बतलाये हैं । शेष कथन सुगम है । २६५, लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्यामें अट्ठाईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? चारों गतियोंके मिध्यादृष्टि जीवके और देवगतिको छोड़कर शेष तीन गतियोंके सम्यग्दृष्टि जीवके होता है । छब्बीस और सत्ताईस विभक्तिस्थान किसके होते हैं? चारों गतियोंके किसी भी मिध्यादृष्टि जीवके होते हैं। चौबीस विभक्तिस्थान किसके होता है ? देवगतिको छोड़कर शेष तीन गतियोंके किसी भी सम्यग्दृष्टिके होता है। इक्कीस विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी क्षायिक सम्यग्दृष्टि मनुष्य या मनुष्यनीके होता है। इसी प्रकार नील और कपोत लेश्याओंका कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि कापोत के नामें बाईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? जिसने दर्शनमोहनी का पूरा क्षय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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