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________________ २२८ जयविलासहिदे कसायेपाहुडे . [पयडिविहत्ती २ कस्स ? अण्ण० तिगइसम्माइहिस्स । एवमेक्कवीस । तेवीसविह० कस्स ? अण्ण मणुससम्माइहिस्स अक्खविद-सम्मामिच्छत्तस्सं । वावीसविह० कस्स ? अण्ण तिगहसम्माइहिस्स अक्खीणदसणमोहणीयस्स । तेरस-बारस-एक्कारस-पंचविह० कस्स ? अण्ण० मणुस्सखवयस्स । ६२६०. गवंस० अट्ठावीसविह० कस्स ? अण्ण० तिगइमिच्छा० सम्माइहिस्स वा । सत्तावीस-छव्वीसविह० कस्स ? अण्ण० तिगइमिच्छादिहिस्स । चउवीसविह कस्स ? अण्ण तिगइसम्माइटिस्स | बावीसविह० कस्स ? अण्ण० दुगइसम्माइटिस्स अक्खीणदसणमोहणीयस्स । एक्कावीसविह० कस्स ? अण्ण० दुगइखइयसम्मादिहिस्स । तेवीसविह० कस्स ? अण्ण मणुस्ससम्माइटिस्स अक्खविदसम्मामिच्छत्तस्स । तेरस-बारसविह० कस्स ? अण्ण० मणुस्सखवयस्स । चौबीस विभक्ति स्थान किसके होता है ? उपर्युक्त तीनों गतियोंके किसी भी सम्यग्दृष्टि जीवके होता है। इसी प्रकार इक्कीस विभक्तिस्थान भी उक्त तीन गतियोंके सम्यग्दृष्टि जीवके कहना चाहिये । तेईस विभक्ति स्थान किसके होता है ? जिसने सम्यगमिथ्यात्वका क्षय नहीं किया है ऐसे किसी भी सम्यग्दृष्टि मनुष्यके होता है। दर्शनमोहनीयकी क्षपणाका प्रारम्भ और मिथ्यात्व तथा सम्यमिथ्यात्वकी क्षपणा मनुष्य ही करता है, इस लिये २३ प्रकृतिक सत्वस्थानका स्वामी मनुष्यको ही बतलाया है। बाईस विभक्ति स्थान किसके होता है ? जिसने दर्शनमोहनीयका पूरा क्षय नहीं किया है ऐसे उक्त तीनों गतियोंके किसी भी कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि जीवके होता है। तेरह, बारह, ग्यारह और पांच विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? किसी एक क्षपक मनुष्यके होते हैं। ६२६०. नपुंसकवेदमें अट्ठाईस विभक्ति स्थान किसके होता है ? देवगतिको छोड़कर शेष तीन गतिके मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीवके होता है। देवगतिमें नपुंसकवेद नहीं होता इसलिये यहां उसका निषेध किया है। सत्ताईस और छब्बीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? उक्त तीन गतियोंके किसी भी जीवके होते हैं। चौबीस विभक्ति स्थान किसके होता है ? उक्त तीन गतियोंके किसी भी सम्यग्दृष्टि जीवके होता है। बाईस विभक्ति स्थान किसके होता है ? जिसने दर्शनमोहनीयका पूरा क्षय नहीं किया है ऐसे नरक और मनुष्यगतिके किसी भी कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टिके होता है। इक्कीस विभक्तिस्थान किसके होता है ? नरक और मनुष्य गतिके किसी भी क्षायिक सम्यग्दृष्टिके होता है। सेईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? जिसने सम्यगमिथ्यात्वका क्षय नहीं किया है ऐसे किसी भी सम्यग्दृष्टि मनुष्यके है। तेरह और बारह विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? किसी भी क्षपक मनुष्यके होते हैं। . विशेषार्थ-कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि या क्षायिक सम्यग्दृष्टि मरकर नरकगतिके सिवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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