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________________ गो०२२] पयडिहाणवित्तीए सामित्वणिदेसो २२७ इडिस्स | चउवीसविह० कस्स ? अण्ण० दुगइसम्माइष्टिस्स । वावीस-एकवीसवि० कस्स १ अण्ण० चउगइसम्माइटिस्स । ___$२५८. वेदाणुवादेण इत्थिवेद० अहावीसविह० कस्स ? अण्ण तिगइमिच्छा० सम्माइटिस्स वा। सत्तावीस-छव्वीसविह० कस्स ? तिगइमिच्छाइहिस्स । चउवीसविहत्ती कस्स ? अण्ण तिगइसम्माइहिस्स । तेवीस-बावीस-एकवीसवि० कस्स ? अण्ण मणुसिणीसम्माइहिस्स । तेरस-बारसविह० कस्स ? अण्ण० मणुसिणीखवयस्स । ६२५६. पुरिसवेदे अट्ठावीसविह० कस्स ? अण्ण० तिगइमिच्छा० सम्माइहिस्स वा। सत्तावीस-छव्वीसविह० कस्स ? अण्ण तिगइमिच्छाइहिस्स। चउवीसविह० जीवके होता है । यहां दो गतियोंसे देव और मनुष्य गतिका ग्रहण किया है। बाईस और इक्कीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? चारों गतियोंके किसी भी सम्यग्दृष्टि जीवके होते हैं। विशेषार्थ-२८ प्रकृतियोंकी सत्तावाले वेदक सम्यग्दृष्टि देव या नारकी मरकर मनुष्योंमें और मनुष्य मरकर देवोंमें ही उत्पन्न होते हैं, इसलिये कार्मणकाययोगके रहते हुए देव और मनुष्यगतिके ही सम्यग्दृष्टि जीव २८ प्रकृतिक सत्त्वस्थानके खामी बतलाये है। इसीप्रकार २४ प्रकृतिक सत्त्वस्थानके सम्बन्धमें भी जान लेना चाहिये। शेष कथन सुगम है। ६२५८.वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदमें अट्ठाईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? नरकगतिको छोड़कर शेष तीन गतियोंके किसी भी मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीवके होता है। नरकगतिमें स्त्रीवेद नहीं होता इसलिये यहां उसका निषेध किया है। सत्ताईस और छब्बीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? नरक गतिके बिना शेष तीन गतियोंके मिथ्यादृष्टि जीवके होते हैं। चौबीस विभक्तिस्थान किसके होता है ? उपर्युक्त तीनों गतियोंके किसी भी सम्यग्दृष्टि जीवके होता है। तेईस, बाईस और इक्कीस विभक्ति स्थान किसके होते हैं ? किसी भी सम्यग्दृष्टि मनुष्यनीके होते हैं। तेरह और बारह विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? किसी भी क्षपक मनुष्यनीके होते हैं। विशेषार्थ-त्रीवेदी द्रव्य मनुष्य दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयकी क्षपणा कर सकते हैं । इसलिए यहां मनुष्यनीके २३, २२, २१, १३ और १२ सत्त्वस्थान बतलाये है। पर कृत्यकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव मरकर स्त्रीवेदियोंमें नहीं उत्पन्न होता इसलिये२२ और २१ प्रकृतिक स्थानका स्वामी भी मनुष्यनीको ही बतलाया है। शेषकथन सुगम है। ६२५६. पुरुषवेदमें अट्ठाईस विभक्ति स्थान किसके होता है ? तियेच, मनुष्य और देव इन तीन गतियोंके किसी भी मिथ्यारष्टि या सम्यग्दृष्टि जीवके होता है। सत्ताईस और 'छब्बीस विभक्ति स्थान किसके होते हैं ? उपर्युक्त तीनों गतियोंके किसी भी मिथ्यादृष्टि जीपके होते हैं। नारकी पुरुषवेदी नहीं होते इसलिये यहां उनका ग्रहण नहीं किया है। --- --- -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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