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________________ १७ जयघवलासहिदे कसायपाहुडे . [पयडिविहत्ती २ पयडीणं जे विहत्तिया तेसिं को भावो ? ओदइओ भावो। कुदो ? संतेसु वि अवसेसभावेसु तेसु विवक्खाभावादो। एवं भावो समत्तो १८७६ अप्पाबहुगाणुगमेण दुविहो णिदेसो, ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण सत्थाणपाबहुअं वत्तइस्सामो। तं जहा, सव्वत्थोवा छव्वीसंपयडीणं अविहतिया, विहत्तिया अणंतगुणा । के ते ? उवसंतकसायप्पहुडि जाव मिच्छादिष्टि त्ति । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सवथोवा विहत्तिया । के ते ? अष्टावीस-सत्तावीस-चउबीससंतकम्मिया तेवीस-बावीससंतकम्मिया च । अविहत्तिया अणंतगुणा । के ते ? छव्वीस-एकवीस संतकम्मियप्पहुडि जाव सिद्धा त्ति । एवं कायजोगि-ओरालिय०-ओरालिमिस्स०उनमें से ओधकी अपेक्षा सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवोंके कौन भाव है ? औदयिक भाव है, यद्यपि उनके अन्य भाव भी रहते हैं किन्तु यहां उनकी विवक्षा नहीं है। इसप्रकार भावानुगम समाप्त हुआ। ६१८७.अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमेंसे ओपनिर्देशकी अपेक्षा स्वस्थान अल्पबहुत्वको बतलाते हैं। वह इसप्रकार है-छब्बीस प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे छब्बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। शंका-छब्बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीव कौनसे हैं ? समाधान-उपशान्तकषायसे लेकर मिथ्यादृष्टि तकके जीव छब्बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले होते हैं। सम्यकप्रकृति और सम्यक्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । शंका-सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव कौनसे हैं ? समाधान-जिनके अट्ठाईस, सत्ताईस, चौबीस, तेईस और बाईस प्रकृतियोंकी सत्ता पाई जाती है वे सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव हैं । ___ सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीवोंसे इन दो प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं ? __ शंका-जिनके सम्यक्प्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वकी विभक्ति नहीं पाई जाती है वे जीव कौनसे हैं ? समाधान-छब्बीस प्रकृतिवाले जीव और इक्कीस प्रकृतिवाले जीवोंसे लेकर सिद्ध जीवों तकके सब जीव उक्त दो प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले हैं। इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और नपुंसकवेदी जीवोंके कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदमें आठ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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