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________________ गा० २२ उत्तरपयडिविहत्तीए कालाणुगमो १७१ लोग० असंखे०भागो, छ चोदसभागा वा देसूणा । दसणतिय० अविह० खेत्तभंगो । एवं सुकलेस्सि० । णवरि अविह० केवलिपदमत्थि । तेउ० सोहम्मभंगो। पम्म० सणक्कुमारभंगो। सासण० सव्वपय० विह० के० खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखे० भागो, अष्ट बारह चोदसभागा वा देरणा। एवं फोसणं समत्तं । ६१८३. कालाणुगमेण दुविहो णिदेसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण अट्ठावीसंपयडीणं विहत्तिया केवचिरं कालादो होंति ? सव्वद्धा । एवं जाव अणाहारएत्ति वत्तव्बं । णवरि, मणुसअपज० छव्वीसं पय० सम्मत्त-सम्मामि० विह० केवचिरं कालादो होंति ? जह० खुद्दाभवग्गहणं एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। वेउब्धियमिस्स० छब्बीसं पय० सम्मत्त-सम्मामि० विह० केव० ? जह० अंतोमुहुत्तं चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम छह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तीन दर्शनमोहनीयकी अविभक्तिवाले संयतासंयत जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार शुक्ललेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि सब प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले शुक्ललेश्यावाले जीवोंके केयलिसमुद्धातपद है । पीत लेश्यावाले जीवोंका स्पर्श सौधर्म स्वर्गके समान है । पद्मलेश्यावाले जीवोंका स्पर्श सानत्कुमार स्वर्गके समान है। सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंमें सव प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा प्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और बारह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसप्रकार स्पर्शनानुयोगद्वार समाप्त हुआ। ६१८३.कालानुगमकी अपेक्षासे निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा अट्ठाईस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवोंका कितना काल है ? सर्व काल है। अर्थात् जिनके अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता है ऐसे जीव सर्वदा पाये जाते हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक यथायोग्य कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी और सम्यक्प्रकृति तथा सम्यग्मिथ्यावकी विभक्तिवाले जीवोंका कितना काल है ? छब्बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण है और सम्यक्प्रकृति तथा सम्यगमिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीवोंका जघन्यकाल एक समय है। तथा दोनोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी तथा सम्यक्प्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीवोंका कितना काल है १ जघन्य काल क्रमसे अन्तर्मुहूर्त और एक समय है। तथा दोनोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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