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जयधवलासहित कषायप्रामृत
शुद्धिपत्र
शुद्ध
१७* ४
अशद्ध विहत्ती योगिमतियों जघन्य से अन्तर्महर्त
३०
२२
शुद्ध प. पं० विहत्ती १ ९६ ४ योनिमतियों, १३२ जघन्य से खुद्दाभव ग्रहण, अन्त- __२७ महूर्त, अन्त
मुंहूर्त
४०
१५६
अशुद्ध खबयवस्स खवयस्स णवंसय
णवंसय [एवंलोभ .... यह पाठ सिया अविह० । ] नहीं चाहिये [इसी प्रकारलोभ यह नहीं कषायी....." चाहिये नहीं भी है] जोवोंके
जीवोंके स्यान
स्थान बारसदि बारसादि बारह
बारह आदि अकपंती अंकपती
१७२ उदयट्टिदं उदयट्टिदिं षढमादि पढ़मादि चातिके
जातिके खत्ते भंगों खेत्त भंगो
१० उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट काल और
२१८ ६ कर्मका उत्कृष्ट कर्मका जघन्य
काल एक समय और
उत्कृष्ट १७ जघन्यकाल जघन्य और
३११ उत्कृष्ट काल
३८९ २९ केवलियोंकी केवलियों
और सिद्धोंको ८ भागेषु
मागेसु ३० लब्यपर्याप्तक लब्ध्यपर्याप्तक ४१६
४२५
२८
४१
५९ ७१
देष
२४
२८, २९
२८, २७
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आगे १, २, ३, ४, ५ ओर ६ का अंक
*१० १८७ और १८ में चूर्णिसूत्रोंके हिन्दी अर्थके छपनेसे रह गया है सो डाल लेना चाहिये ।
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