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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिविहत्तीए कालागुगमो १११ काइए सम्मत्त सम्मामि० विहत्ति० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे ० भागो । सेसछव्वीसंपयडीणं विहत्ति ० जह० खुद्दा ०, उक्कस्स० अनंतकालमसंखेजा पोग्गल परियट्टा । बादरवणफदिकाइयाणं बादरएइंदियभंगो। तेसिं पञ्जत्तापजत्ताणं बादरेइंदियपत्तापजभंगो । सुहुमवणफदीणं सुहुमेइंदियभंगो । बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीराणं बादरपुढविभंगो। तेसिं पत्तापञ्जाणं बादरपुढविपजत्तापजत्तभंगो । णिगोदजीवेसु सम्मत्त - सम्मामि० विहत्ति० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । सपडणं विह० जह० खुद्दाभवग्गहणं । उक्क० अढाइञ्जपोग्गल परियट्टा । बादरणिगोदजीवेसु सम्मत्त - सम्मामि ० विहत्ति० जह० एस० उक्क० पलिदो ० है तो एक दूसरी स्थितिके उपचार करनेका कोई प्रयोजन नहीं रहता । अतः यहां कर्मस्थिति से मोहनी की उत्कृष्ट स्थितिका ही ग्रहण करना चाहिये , वनस्पतिकायिक जीवोंके सम्यक् प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातर्वा भाग है। तथा शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । बादर वनस्पतिकायिकोंके सभी प्रकृतियोंका काल बादर एकेन्द्रियोंके समान जानना चाहिये । तथा बादरवनस्पतिकायिकपर्याप्त और बादरवनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीवोंके सभी प्रकृतियोंका काल बादर एकेन्द्रियपर्याप्त और बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके समान जानना चाहिये । सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवोंके सभी प्रकृतियोंका काल सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके समान होता है । बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंके सभी प्रकृतियोंका काल बादरपृथिवीकायिक जीवोंके समान होता है । तथा बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त और बादर बनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त जीवोंके सभी प्रकृतियोंका काल बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त और बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त जीवोंके समान होता है । विशेषार्थ - एक जीव वनस्पतिकाय में कमसे कम खुद्दाभवग्रहण कालतक और अधिक अधिक असंख्यातपुद्गल परिवर्तन कालतक रहता है । इसलिये छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल असंख्यात पुलपरिवर्तनप्रमाण कहा है। परन्तु सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनाकी अपेक्षा उनका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग ही प्राप्त होता है, क्योंकि मिध्यात्वके साथ इससे अधिक कालतक इन प्रकृतियोंका सत्व नहीं रहता है । ऊपर कहे गये शेष बादर वनस्पतिकायिक आदिके सभी प्रकृतियोंका काल बादर एकेन्द्रिय आदिके समान जान लेना चाहिये । निगोदजीवोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । शेष प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहप्रमाण और उत्कृष्ट काल अढ़ाई पुगल परिवर्तनप्रमाण है । बादर निगोद जीवोंमें सम्यक् - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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