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________________ . प्रस्तावना अर्थ-जिस समय वीर भगवानने मोक्ष लक्ष्मीको प्राप्त किया, उसी समय अवन्तिके पुत्र पालकका अभिषेक हुश्रा । पालकका राज्य ६० वर्ष तक रहा। उसके बाद १५५ वर्ष तक विजय वंशके राजाओंने, ४० वर्ष तक मरुदय ( मौर्य ) वंशने, तीस वर्ष तक पुष्यमित्रने, ६० वर्ष तक वसुमित्र अमिमित्रने, सौ वर्ष तक गंधर्व राजाओंने और ४० वर्ष तक नरवाहनने राज्य किया। उसके बाद भृत्यान्ध्र राजा हुए। उन भृत्यान्ध्र राजाओंका काल २४२ वर्ष होता है । उसके बाद २३१ वर्ष तक गुप्तोंने राज्य किया। उसके बाद इन्द्रका पुत्र चतुर्मुख नामका कल्की हुआ। उसकी आयु सत्तर वर्षकी थी और उसने ४२ वर्ष तक राज्य किया। इस तरह सबको मिलानेसे ६०+१५५ ४०+३०+६०+१००+४०+२४२+२३१+४२=१००० वर्ष होते हैं। इस प्रकार भगवान महावीरके निर्वाणसे १००० वर्ष तकके राजवंशोंकी गणना करके त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें पुनः लिखा है "प्राचारंगधरादो पणहत्तरिजुतदुसयवासेस् । बोलोणेसुबद्धो पट्टो कक्कीसणरवइणो ॥१००॥" अर्थात्-आचारांगधारियोंके बाद २७५ वर्ष बीतनेपर कल्किराजाका पट्टाभिषेक हुआ । आचारांगधारियोंका अस्तित्व वीर नि० सं०६८३ तक बतलाया है। उसमें २७५ जोड़नेसे १५८ होते हैं । इसमें कल्किके राज्यके ४२ वर्ष मिलानेसे १००० बर्ष हो जाते हैं। भगवान महावीरके निर्वाणसे एक हजार वर्ष तककी इस राजकाल गणनाके रहते हुए यह कैसे कहा जा सकता है कि त्रिलोकप्रज्ञप्तिके कर्ता उससे पहले हुए हैं ? यदि यह राजकालगणना काल्पनिक होती और उन राजवंशांका भारतीय इतिहासमें कोई अस्तित्व न मिलता, जिनका कि उसमें निर्देश किया गया है तो उसे दृष्टिसे ओझल भी किया जा सकता था । किन्तु जब उन सभी राजवंशोंका अस्तित्व उसी क्रमसे पाया जाता है जिस क्रमसे वह त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें दिया • या है तो उसे कैसे भुलाया जा सकता है ? खास करके आंध्रवश और गुप्तवंश तो भारतके प्रख्यात राजवंशांमें हैं। त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें गुप्तवंशके बाद कल्किके राज्यका निर्देश किया है और लिखा है (१) त्रिलोकप्रज्ञप्तिके ही प्राधारपर जिनसेनाचार्यने भी अपने हरिवंशपुराणमें इस राजकालगणनाको स्थान दिया है। प्राकृत शब्दोंका संस्कृत रूपान्तर करनेके कारण एक दो राजवंशके नामोंमें कुछ अन्तर पड़ गया है। श्वेताम्बरग्रन्थ तित्थोगाली पइन्नयमें भी वीरनिर्वाणसे शककाल तक ६०५ वर्ष में होनेवाले राजवंशोका उल्लेख इसीप्रकार किया है। यथा "जं रणि सिद्धिगयो परहा तित्थंकरो महावीरो। तं रयणिमवंतीए अभिसित्तो पालओ राया ॥ पालकरण्णो सठि पुण पण्णसयं वियाण गंदाणं। मुरियाणं सठिसयं पणतीसा पुस्समित्ताणं ॥ बलमित्त भाणुमित्ता सट्ठी चत्ता य होंति नहसेणे। गइभसयमेगं पुण पडिवन्नो तो सगो राया ॥" अर्थात-"जिस रातमें भर्हन्त तीर्थङ्करका निर्वाण हुआ उसी रात्रिमें अवंति-उज्जनीमें पालकका राज्याभिषेक हुआ। पालकके ६०, नन्दवंशके १५०, मौर्योके १६०, पुष्यमित्रके ३५, बलमित्र-भानुमित्रके ६०. सभासेनके ४० और गर्दभिल्लोंके १०० वर्ष बीतनेपर शक राजा हमा।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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