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(वेदनाखण्ड)/ ज० धवला
गौतम सुधर्मा
सुधर्म
विष्णु
प्रस्तावना
४६ जहाँ तक हम जानते हैं भगवान महावीरके बादको प्राचार्य परम्परा और कालगणनाका यह उल्लेख कमसे कम दिगम्बर परम्परामें तो सबसे प्राचीन है। इसके बाद हरिवंशपुराण, धवला, जयधवला, आदिपुराण, इन्द्रनन्दिके श्रुतावतार और ब्रह्महेमचन्द्र के श्रुतस्कन्धमें भी उक्त उल्लेख पाया जाता है। जो प्रायः त्रिलोकप्रज्ञप्तिसे मिलता जुलता है। किन्हीं किन्हीं आचार्योंके नामों में थोड़ा सा अन्तर है जो प्राकृत नामोंका संस्कृतमें रूपान्तर करनेके कारण भी हुआ जान पड़ता है। किन्तु सभी उल्लेखोंमें गौतम स्वामीसे लेकर लोहाचार्य तकका काल ६८३ वर्ष ही स्वीकार किया है । स्पष्टीकरणके लिये उक्त सभी उल्लेखांकी तालिका नीचे दी जाती है
धवला - त्रि० प्र० ___ आदिपु० श्रुतावतार
काल १ गौतम गौतम
गौतम गौतम २ सुधर्मा लोहार्य
सुधर्म
३ केवली-६२ वर्ष ३ जम्ब जम्बू जम्बू जम्बू
जम्बू १ नन्दि विष्णु विष्णु
विष्ण २ नन्दिमित्र नन्दि नन्दिमित्र नन्दिमित्र नन्दि ३ अपराजित | अपराजित अपराजित | अपराजित | अपराजित ५ श्रुतकेवली-१०० वर्ष ४ गोबर्द्धन गोबर्द्धन गोबर्द्धन । गोबर्द्धन गोवर्द्धन ५ भद्रबाहु भद्रबाहु भद्रबाहु
भद्रबाहु भद्रबाहु १ विशाख विशाख विशाखाचार्य विशाखाचार्य विशाखदत्त २ प्रोष्ठिल प्रोष्ठिल प्रोष्ठिल प्रोष्ठिल प्रोष्ठिल ३ क्षत्रिय
क्षत्रिय
क्षत्रिय क्षत्रिय क्षत्रिय ४ जय
जयसेन जयसेन जयसेन ५ नाग
नाग नागसेन नागसेन नागसेन ६ सिद्धार्थ | सिद्धार्थ | सिद्धार्थ सिद्धार्थ सिद्धार्थ । ११ दशपूर्वी-१८३ वर्ष ७ धतिसेन धतिसेन धृतसेन धतिसेन धतिषेण ८ विजय विजय विजय विजय विजयसेन ९ बुद्धिल बद्धिल बुद्धिल बुद्धिल बुद्धिमान् १० गंगदेव गंगदेव गंगदेव गंगदेव गङ्ग ११ सुधर्म धर्मसेन धर्मसेन धर्मसेन धर्म १ नक्षत्र नक्षत्र नक्षत्र नक्षत्र नक्षत्र २ जयपाल जयपाल जसपाल जयपाल जयपाल ३ पाण्डु पाण्ड
पाण्ड पाण्ड पाण्डु
। ५ एकादशांगधारी-२२० वर्ष ४ ध्रुवसेन ध्रुवसेन ध्रुवसेन ध्रुवसेन द्रुमसेन ५ कसार्य कंस कंसाचार्य कंसाचार्य कंस १ सुभद्र
सुभद्र
सुभद्र सुभद्र सुभद्र २ यशोभद्र यशोभद्र यशोभद्र यशोभद्र अभयभद्र ३ यशोबाह यशोबाहु यशोबाहु भद्रवाहु जयबाहु ४ आचारांगधारी-११८ वर्ष ४ लोहार्य । लोहाचार्य लोहाचार्य | लोहार्य लोहार्य
६८३
जय
(१) सर्ग ६० श्लो०४७९-४८१ तथा सर्ग ६६ श्लो०२२-२४ (२) पर्व २, श्लो०१३९-१५० (३) तत्त्वानुशा०, पृ० ८० । (४) तत्त्वानुशा० पृ० १५८-१५९ । (५) लोहार्य सुधर्माचार्यका ही दूसरा नाम था। यह बात जम्बूद्वीवपण्णत्तिके एक उल्लेखसे स्पष्ट है । (६) सम्भवतः इनका पूरा नाम विष्णुनन्दि था, जिसका आधा अंश विष्णु और नन्दिके नामसे पाया जाता है। हरिवंशपुराणके छयासठवें सर्गमें भगवान महावीरसे लेकर लोहाचार्य तककी वही आचार्यपरम्परा दी है जो त्रिलोकप्रज्ञप्ति आदिमें पाई जाती है । अर्थात् ६२ वर्ष में तीन केवली, १०० वर्ष में पांच श्रुतकेवली, १८३ वर्षमें ग्यारह दसपूर्वके
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